यात्रा वृत्तांत - उज्जैन महाकाल ज्योतिर्लिंग
यात्रा वृत्तांत - उज्जैन महाकाल ज्योतिर्लिंग
Yatra Vritaant
मैं आप सभी को अपने साथ ले जा रहा हूँ , ऐसी रोमांचक आध्यात्मिक यात्रा पर जिसने मेरे जीवन में एक अमिट छाप छोड़ दी है। मुझे अवसर मिला भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक साथ दो या यूं कहे तो तीन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने का। मैंने यहां दो अथवा तीन क्यों कहा, यह आप जब आगे का वृत्तान्त पढ़ेंगे तो स्वयं जान जाएंगे
रविवार और क्रिसमस के उत्सव की छुट्टी मिलाकर हमारे पास केवल पांच दिनों का ही समय था अतः हमने निर्णय लिया कि ट्रेन से जाने की बजाय दिल्ली से विमान द्वारा भोपाल जाया जाए, तो चलिए चलते हैं उस अलौकिक ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने।
वर्तमान समय में हम शिमला में रहते हैं अतः हमने निर्णय लिया कि शिमला से सीधी टैक्सी बुक करके दिल्ली पहुंचा जाए। शिमला से दिल्ली एयरपोर्ट की दूरी 360 किलोमीटर है जिसे 7:30 घंटे में तय किया जा सकता है। लगभग 7:00 बजे हम शिमला से दिल्ली के लिए रवाना हुए क्योंकि यह दिसंबर का महीना था इस दौरान मैदानी इलाकों में धुंध की काफी समस्या रहती है और क्योंकि रात्रि का समय था तो इस समय धुंध अत्यधिक बढ़ जाती है। हमारे ड्राइवर साहब बातचीत में काफी अच्छे मालूम हुए इसलिए हमने निर्णय लिया कि उनके साथ बात करते-करते दिल्ली जाया जाए। बात करते-करते हमें यह ज्ञात हुआ कि ड्राइवर साहब सुबह से गाड़ी चला रहे हैं और थकावट के कारण उन्हें नींद भी आ सकती है यह जानकर हम सभी काफी डर गए और फिर मैंने निर्णय लिया कि क्यों न इनसे और बातें की जाएं
बात करते-करते इन्हें नींद भी नहीं आएगी और यदि इन्हें नींद आने भी लगी तो हमें पता चल जाएगा और हम उन्हें जगा देंगे। रास्ते में अंबाला, हरियाणा से आगे निकलकर धुंध काफी बढ़ने लगी और गाड़ी की गति लगभग 20 किलोमीटर प्रति घंटे तक आ गई। उस समय तो हम घबरा ही गए थे कि यदि गाड़ी इतनी धीरे चलती रहेगी तो हमें निश्चित समय पर एयरपोर्ट कैसे पहुंचाएगी? हमारी फ्लाइट दिल्ली से प्रातः 5:00 बजे की थी इसलिए हम चाह रहे थे की प्रातः 4:00 बजे तक हम सभी एयरपोर्ट पहुंच जाए। परंतु इस धीमी गति से हमें यह लग रहा था की अवश्य ही हम फ्लाइट मिस कर देंगे और हमारा समय और धन का बहुत नुकसान हो जाएगा। परंतु भगवान भोले शंकर की कृपा से आगे धुंध कम होती गई और ड्राइवर साहब ने हमें सही समय पर एयरपोर्ट पहुंचा दिया। वहां एयरपोर्ट लॉज में हमने जल्दी जल्दी कुछ जलपान किया और अग्रिम यात्रा हेतु विमान में बैठ गए।
मेरे साथ मेरी धर्मपत्नी और हमारी बेटियां पांच वर्ष की शिवांशी और केवल दो वर्ष की तक्ष्वी भी थी, उन्हें देखकर हमें ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वे दोनों विमानयान में बैठकर बहुत घबराएंगी परंतु वह दोनों अत्यंत रोमांचित थीं और हंसते-खेलते विमान से हम भोपाल पहुंच गए।
उज्जैन शहर भोपाल और इंदौर के मध्य में स्थित है। क्योंकि भोपाल मध्य प्रदेश की राजधानी है और वहां के लिए फ्लाइट्स की संख्या इंदौर की अपेक्षा अधिक है इसलिए हमें भोपाल की फ्लाइट सस्ती पड़ी और हमने पहले भोपाल जाने का निर्णय लिया। भोपाल से उज्जैन जाने के लिए टैक्सी हम पहले ही ऑनलाइन बुक करवा चुके थे इसलिए हमें वहां पहुंचकर टैक्सी ढूंढने और अन्य बातों में समय व्यर्थ नहीं करना पड़ा और एयरपोर्ट पहुंचते ही हम तुरंत टैक्सी में बैठकर उज्जैन के लिए चल पड़े। भोपाल एयरपोर्ट से उज्जैन महाकाल मंदिर की दूरी लगभग 190 किलोमीटर है जिसे हमने 3:30 घंटे में तय कर लिया। मोहित मलिविया जी जो हमारे वाहन चालक थे उनका स्वभाव बहुत आत्मीय था। ऐसा प्रतीत होता था मानो वे हमें कई वर्षों से जानते हो हमसे और हमारी बड़ी बेटी से वह इस प्रकार वार्तालाप कर रहे थे जैसे वह हमारे कोई दूर के रिश्तेदार हो। कई बार तो जब हम घूमते घूमते थक जाते थे तो वह हमारी छोटी बेटी को गोद में भी उठा लेते थे उनके इस व्यवहार ने हमें मध्य प्रदेश में अकेले होने का एहसास नहीं होने दिया। इसलिए टैक्सी द्वारा यात्रा का हमारा सफर बातों बातों में कब निकल गया हमें पता भी ना चला।
मोहित जी मूलतः इंदौर के निवासी थे अतः उन्हें आसपास के सभी स्थानों के विषय में पूर्ण जानकारी थी वह हमें महाकाल उज्जैन महाकाल के दर्शन करवाने सीधा उज्जैन ले गए वहां उन्होंने गाड़ी पार्किंग में लगाकर हमारे लिए कक्ष का प्रबंध किया। तत्पश्चात वह हमें दर्शन हेतु मंदिर की ओर ले गए। हमारे पास समय का अभाव था था इसलिए हमने निर्णय लिया कि पास का शुल्क देकर शीघ्र दर्शन कर लिए जाएं जिससे बच्चे भी अधिक थकें नहीं तथा अन्य मंदिरों के दर्शन के लिए भी हमारे पास पर्याप्त समय बच जाए।
भगवान शिव से जुड़े 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे प्रसिद्ध महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग यहां उज्जैन में स्थित है। मान्यता है कि दूषण नाम के राक्षस के अत्याचारों से पीड़ित होकर उज्जैन के महाराजा चंद्रसेन जो भगवान शिव के परम भक्त थे और उनकी प्रजा ने भगवान शिव का आह्वान किया, तब उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव धरती फाड़कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए और राक्षस का वध किया। कहते हैं प्रजा की भक्ति और उनके अनुरोध को स्वीकार कर भगवान शिव सदा के लिए ज्योतिर्लिंग के रूप में उज्जैन में विराजमान हो गए। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की ब्रह्म मुहूर्त में पूजा की जाती है। इस दौरान भगवान शिव को भस्म का श्रृंगार किया जाता है। महाकाल मंदिर के परिसर में एक और महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल है जिसे कहते हैं महाकाल लोक। महाकाल लोक में अनेक देवी देवताओं की अत्यंत भव्य मूर्तियां उपस्थित है जिन्हें दर्शन कर एक अलौकिक लोक में होने का एहसास होता है।
महाकाल लोक में दर्शन करने के पश्चात हम समीप में ही स्थित हरसिद्धि माता के शक्तिपीठ में दर्शन हेतु गए। कहा जाता है कि सती माता की वहां कोहनी स्थित है। मंदिर के प्रांगण में दो स्तंभ स्थित हैं जो शिव और शक्ति के प्रतीक हैं और संध्या आरती के समय उन दोनों स्तंभों पर असंख्य दिए जलाए जाते हैं जिसे प्रत्यक्ष देखकर हम अचंभित हो उठे। वहां के पुजारियों ने इतनी शीघ्रता से सभी दीपक जला दिए जिसे साधारण व्यक्ति जलाने की कल्पना भी नहीं कर सकता। संध्या आरती के पश्चात हमने माता हरसिद्धि के दर्शन किए और समीप स्थित बाज़ार का भ्रमण किया और अपने बच्चों के लिए कुछ खिलौने लिए और अपने रिश्तेदारों को स्मृति चिह्न प्रदान करने के लिए ज्योतिर्लिग के चित्र भी खरीदे। उसके बाद हमने अपने वाहन चालक मोहित जी के साथ रात का भोजन किया और विश्राम और रात्रि शयन के लिए अपने होटल चले गए इस प्रकार हमने अपने दूसरे दिवस की यात्रा पूर्ण की।
अगले दिन प्रातःआठ बजे हम मध्यप्रदेश में ही स्थित भगवान शिव के अन्य ज्योतिर्लिंग ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए निकल गए। उज्जैन से ओंकारेश्वर जाते हुए हम भारत से सबसे स्वच्छ शहर इंदौर से गुजरे जहां के हमारे मोहित जी हैं। उज्जैन महाकाल ज्योतिर्लिंग से ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी 137 किलोमीटर है जो हमने लगभग 4 घंटे में पूरी की। दोपहर 12:00 बजे हम ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग पहुंच गए।
उस दिन रविवार का अवकाश था अतः मंदिर में अत्यंत भीड़ थी और भीड़ के कारण हमें दर्शन करने में बहुत अधिक समय लग गया, हमारी दोनों बेटियां तो बहुत थक गई थीं। उस दिन हमें दर्शन करने में लगभग 6 घंटे लग गए।
एक और महत्वपूर्ण बात जिसका वर्णन करना तो मैं भूल ही गया, क्योंकि वह दिसंबर का महीना था और हम शिमला से गए थे तो हम सर्दी के गर्म कपड़े लेकर गए थे पर उज्जैन से भूमध्य रेखा गुजरती है अतः दिसंबर के माह में भी वहां बहुत गर्मी थी जो हमारे लिए एक तो एक अन्य ही अनुभव रहा।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के पश्चात हम ममलेश्वर महादेव के मंदिर के दर्शन करने गए जो सामने नदी के दूसरी ओर ही था। वहां पहुंचने के लिए पुल पार करना है। उस स्थान पर यूं तो ये दोनों ज्योतिर्लिंग अथवा मंदिर अलग अलग है परंतु 12 ज्योतिर्लिंग की गणना में इनको एक ही माना जाता है।
मान्यता है कि प्राचीनकाल में ओंकारेश्वर मंदिर की पहाड़ी पर एक मांधाता नाम के राजा ने तप किया था। अतः इस पर्वत को मांधाता पर्वत भी कहते हैं। राजा के तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए और यहां प्रकट हुए। इसके बाद राजा ने शिव जी से वरदान के रूप में कहा कि वे अब से यहीं वास करें। शिव जी अपने भक्त की इच्छा पूरी करने के लिए ज्योति स्वरूप होकर यहां स्थापित शिवलिंग में समा गए। मान्यता है कि यहां स्थापित शिवलिंग स्वयंभू है, यानी ये स्वयं प्रकट हुआ है। ओंकारेश्वर के साथ ही यहां के ममलेश्वर मंदिर में दर्शन-पूजन करने की परंपरा है। नर्मदा एवं कावेरी नदी का संगम ओंकारेश्वर में होता है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के इंदौर शहर से लगभग 78 किमी की दूरी पर नर्मदा नदी के किनारे स्थित है। यह एकमात्र मंदिर है जो नर्मदा नदी के उत्तर में स्थित है।
यहां पर भगवान शिव नर्मदा नदी के किनारे ॐ के आकार वाली पहाड़ पर विराजमान हैं। उज्जैन स्थिति महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की भस्म आरती की तरह ओंकारेश्वर मंदिर की शयन आरती विश्व प्रसिद्ध है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में भगवान शिव की सुबह मध्य और शाम को तीन प्रहरों की आरती होती है। मान्यता है कि रात्रि के समय भगवान शिव यहां पर प्रतिदिन सोने के लिए लिए आते हैं। एक मान्यता यह भी है कि इस मंदिर में महादेव माता पार्वती के साथ चौसर खेलते हैं। यही कारण है कि रात्रि के समय यहां पर चौसर बिछाई जाती है और आश्चर्यजनक तरीके से सुबह चौसर और उसके पासे कुछ इस तरह से बिखरे मिलते हैंं, जैसे रात्रि के समय उसे किसी ने खेला हो। इसके बाद भी हमने मध्य प्रदेश में कई विश्व प्रसिद्ध स्थानों की यात्रा की।
अग्रिम यात्रा का वृत्तान्त अगले अंक में.......
डॉ. विपिन शर्मा
प्र. स्ना. शिक्षक (संस्कृत)
पीएम श्री केंद्रीय विद्यालय जतोग छावनी, शिमला
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