6.5.2 कक्षा-6, एनसीईआरटी हिंदी पुस्तक 'मल्हार' अध्याय-5, रहीम के दोहे Class-6, NCERT Hindi Malhaar Lesson- 5, Rahim ke Dohe
6.5.2 कक्षा-6, एनसीईआरटी हिंदी पुस्तक 'मल्हार'
अध्याय-5, रहीम के दोहे
Class-6, NCERT Hindi Malhaar
Lesson- 5, Rahim ke Dohe
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शब्दार्थ :
बड़ेन- बड़ा। ,
लघु- छोटा।
डारी- डालना
तलवारि- तलवार
तरुवर- वृक्ष
सरवर - सरोवर
परकाज- दूसरे का कार्य।
हित- भलाई।
संपति- धन-दौलत।
संचहि - एकत्रित करना/ जोडते हैं।
सुजान- बुद्धिमाना सन्जन
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मेरी समझ से
(क) नीचे दए गए प्रश्ो ोंका सबसे सही (सटीक) उत्तर कौन-सा है?
उसके सामने तारा (★) बनाइए—
प्रश्न 1.
“रदहमन दिह्वा बावरी, कदह गइ सरग पताल। आपुतो कदह भीतर रही, िूती खात कपाल।”
दोहेका भाव है-
• सोच-समझकर बोलना चादहए।
• मधुर वाणी मेंबोलना चादहए।
• धीरे– धीरेबोलना चादहए।
• सदा सच बोलना चादहए।
उत्तर:
• सोच-समझकर बोलना चाहिए।
प्रश्न 2.
“रदहमन देखख बडेन को, लघुन दीदियेडारर । िहााँकाम आवेसुई, कहा करेतलवारर।” इस
दोहेका भाव क्या है?
• तलवार सुई सेबडी होती है।
• सुई का काम तलवार नही ोंकर सकती।
• तलवार का महत्व सुई सेज्यादा है।
• हर छोटी-बडी चीज़ का अपना महत्व होता है।
उत्तर:
•हर छोटी-बडी चीज़ का अपना महत्व होता है।
(ख) अब अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए और कारण बताइए आपने यही उत्तर क्यो चुने?
उत्तर:
(1) सोच-समझकर बोलना चाहिए ताकि बाद में पछतावा न पड़े।
(2) हर छोटी-बडी चीज का अपना महत्व होता है अर्थांत किसी को उसके रूप आकार या आर्थिक सिथिति से नहीं आंकना चाहिए क्योंकि प्रत्येक का अपनी-अपनी जगह महत्व होता है।
मिलकर करें मिलान
पाठ में से कुछ दोहे स्तंभ 1 में दिए गए हैं और उनके भाव स्तंभ 2 में निए गए हैं।
अपने समूह में इन पर चर्चां कीजिए और रेखा खींचकर सही भाव से मिलान कीजिए।
1 - 3
2 - 2
3 - 1
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नीचे दिए गए दोहों पर समूह में चर्चा कीजिए और उनके अर्थ या भावार्थ अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए-
प्रश्न-
(क) "रहिमन बिपदाहू भली, जो थोरे दिन होया
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय।।"
(ख) "रहिमन जिह्वा बावरी, कहि ं गइ सरग पताल।
आपुतो कहि भीतर रही, जूती खात प, हीं कपाल।।"
उत्तर -
(क) रहीमदास का मानना है कि थोड़े दिन की विपदा भी भली होती है जो हमें यह बता देती है कि संसार में कौन हमारा हितेषी है और कौन अहितैषी अर्थात कौन हमारा मुश्किल समय में साथ देने वाला है और कौन नहीं।
(ख) रहीमदास का कहना है कि हमारी जीभ बिल्कुल बावरी अर्थात पागल जैसी होती है ।यह कई बार ऐसा कुछ बोल देती है कि सिर को जूते खाने पड़ते हैं अर्थात मनुष्य को पछताना पडता है।
सोच-विचार के लिए
दोहों को एक बार फिर से पढिए और निम्नलिखित के बारे में पता लगाकर अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए-
(1) "रहिमन धागा प्रेम का, मत तोडो छिटकाय
टूटे फिर ना मिले, मिले गाँं परिजाया॥।"
(क ) इस दोहे में 'मिले' के स्थान पर "'जुड़़" और 'छिटकाय' के स्थान पर 'चटकाय' शब्द का प्रयोग भी लोक में प्रचलित है। जैसे-
" रहिमन धागा प्रेम का, मत तोडो चटकाय। टूरेसे फिर ना जुडे, जुडे गाँं पड़ जायl।"
इसी प्रकार पहले दोहे में 'डारि' के स्थान पर 'डार' तलवारि' के स्थान पर 'तरबार' और चौथे दोहे में'मानुष " के स्थान पर "'मानस' का उपयोग भी प्रचलित हैं। ऐसा क्यों होता है?
उत्तर-
डारि के स्थान पर डार, तलवारि के स्थान पर तलवार, मानुष (मनुष्य) के स्थान पर मानस आदि शब्दों का प्रयोग बोली बदल जाने के कारण होता है।
(ख) इस दोहे में प्रेम के उदाहरण में धागे का प्रयोग ही क्यों किया गया है? क्या आप धागे के स्थान पर कोई अन्य उदाहरण सुझा सकते हैं? अपने सुझाव का कारण भी बताइए।
उत्तर- कवि ने प्रम के टूटने को धागे के द्वारा दर्शाया है कि जिस प्रकार धागा एक बार टूट जाए तो उसे जोड़ने के लिए गाँठ लगानी पडती है। ऐसे ही प्रेम संबंधों में दरार आ जाए तो भले ही उन्हें फिर से जोड़ लिया जाए परंतु मन-मुटाव रह ही जाता है। इसे हम अन्य उदाहरणों द्वारा भी समझ सकते है जैसे-
(i) नदी के जल से एक लोटा पानी ले लिया जाए तो उन्हें दोबारा नदी में मिलाया तोजा सकता है परतु उसे उसकी सहोदर (मित्र) बँदों से नहीं मिलाया जा सकता। ऐसे ही किसी से संग अगर टूट जाए तो दोबारा वैसे नहीं बन पाते।
(ii) एक कीमती कपड़े के फट जाने पर उसे कितना भी सिल लिया जाए लेकिन मन में उसका फटा होना खटकता ही रहता है।
(2) "तरुवर फल नहं खात हं, सरर पियहिँन पान। कहि रहीम पर 'काज हित, संपति सँचहि सुजान।।" इस दोहे में प्रृति के माध्यम सेमनुष्य के किस मानवीय गुण की बात की गई है? प्रकृति सेहम और क्या-क्या सीख सकते हैं?
उत्तर- प्रकृति के माध्यम से इस दोहे में मनुष्य के इस मानवीय गुण की बात की गईं है कि जैसे पेड अपने फल नहीं खाते, सरोवर अपना जल ग्रहण नहीं करते। ऐसे ही सज्जन धन का संचय स्वयं के लिए न करके दूसरों की भलाई के लिए करते हैं। प्रकृति से हम और गुण भी सीख सकते हैं। जैसे-
* नदियों के जल की भाॉति निरंतर आगे बढ़ना चाहिए।
* जिस प्रकार तपती गरमी से बचने के लिए वृक्ष छाया देते हैं, वैसे ही दूसरों के कठिन समय में हमें उनकी मदद करनी चाहिए।
*फूलों को भाँति अपने अच्छे कार्यों की सुगंध चारों ओर बिखेरनी चाहिए।
* सूरज की भाँति अच्छे कार्य करने पर अपना नाम जग में चमकाना चाहिए।
* पर्वतों की भाँति अपने विचारों को दृढ रखना चाहिए।
* सागर की भॉंति अपने हृदय को विशाल बनाना चाहिए। जीवन में अच्छी-बुरी जिन भी घटनाओं का सामना हो उन्हें गहराई से अपने अंदर समेटना चाहिए।
शब्दों की बात
हमने शब्दों के नए-नए रूप जाने और समझे। अब कुछ करके देखें–
• शब्द-संपदा
कविता में आए कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं। इन शब्दों को आपकी मातृभाषा में क्या कहते हैं? लिखिए।
कविता में आए शब्द - मातृभाषा में समानार्थक शब्द
तरुवर - पेड़
बिपती - कष्ट
छिटकाय - तोड़ना
सुजान - सज्जन
सरवर - तालाब
साँचे - सच्चे
कपाल - दिमाग
विशेष – विद्यार्थी अपनी-अपनी मातृभाषा के शब्द भी लिख सकते हैं।
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■ शब्द एक अर्थ अनेक
“रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।”
इस दोहे में "पानी" शब्द के तीन अर्थ हैं – सम्मान, जल, चमक।
इस प्रकार कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं। आप भी इन शब्दों के तीन-तीन अर्थ लिखिए। आप इस कार्य में शब्दकोश, इंटरनेट, शिक्षक या अभिभावकों की सहायता भी ले सकते हैं।
उत्तर –
कल – आने वाला कल, चैन या शांति, पुर्जा/मशीन
पत्र – पता, चिट्ठी, दल
कर – हाथ, टैक्स, किरण
फल – परिणाम, एक खाने का फल (आम), हल का अग्र भाग
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