संवाद लेखन Samvaad Lekhan पिता और पुत्र के बीच संवाद: अनुशासन का महत्व
संवाद लेखन Samvaad Lekhan
पिता और पुत्र के बीच संवाद: अनुशासन का महत्व
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पिता और पुत्र के बीच संवाद: अनुशासन का महत्व
पुत्र (अंशु):
पिताजी, मुझे रोज़ समय पर उठना, पढ़ना और खेलना—ये सब एक नियम के अनुसार करना थोड़ा कठिन लगता है। क्या अनुशासन इतना ज़रूरी है?
पिता (पंडित रमेश):
बिलकुल, बेटा। अनुशासन हमारे जीवन की रीढ़ की हड्डी है। जैसे रेलगाड़ी पटरी पर चलती है तभी गंतव्य तक पहुँचती है, वैसे ही जीवन भी अनुशासन की पटरी पर चलकर ही सफल होता है।
पुत्र:
लेकिन पिताजी, अगर मैं कभी देर से पढ़ाई कर लूं या खेल में अधिक समय बिता दूं तो क्या फर्क पड़ता है?
पिता:
बेटा, छोटा सा फर्क ही बड़ी असफलताओं की जड़ बन सकता है। अनुशासन से हम अपने समय का सदुपयोग करना सीखते हैं। इससे मन स्थिर रहता है, लक्ष्य स्पष्ट होता है और आत्मविश्वास बढ़ता है।
पुत्र:
क्या सभी सफल लोग अनुशासन का पालन करते हैं?
पिता:
बिलकुल! चाहे वो महात्मा गांधी हों, अब्दुल कलाम या कोई भी महान वैज्ञानिक—उनकी दिनचर्या अनुशासन की मिसाल रही है। अनुशासन ही उन्हें आम से खास बनाता है।
पुत्र (मुस्कराते हुए):
अब मैं समझा, पिताजी। मैं भी कोशिश करूँगा कि समय पर उठूँ, पढ़ूँ और नियमों का पालन करूँ।
पिता (स्नेह से):
शाबाश बेटे! जब तुम अनुशासन में रहोगे, तो सफलता खुद तुम्हारे कदम चूमेगी।
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