5.1-3 शब्द भंडार और शब्द निर्माण – शब्दों का वर्गीकरण Shabd Bhandaar aur Nirmaan- shabdon ka Vargikaran

 हिन्दी भाषा और अनुप्रयुक्त व्याकरण

खंड - क

5. शब्द भंडार और शब्द निर्माण – शब्दों का वर्गीकरण

शब्द रचना - वर्णों का ऐसा समूह जिसका निश्चित अर्थ होता है, उसे शब्द कहते हैं। वर्णों के मेल से बनी सार्थक ध्वनि शब्दहोती है।

क + म + ल = कमल, यह शब्द है क्योंकि इसका अर्थ है।

म + क + ल = मकल, यह नहीं है क्योंकि इसका कोई अर्थ नहीं है।

शब्द-भंण्डार - किसी भाषा में प्रयुक्त होने वाले शब्दों के समूह को उस भाषा का शब्द-भंडार कहते हैं। प्रत्येक भाषा का शब्द भंडार समय के साथ घटता-बढ़ता रहता है। समय के साथ नए शब्दों का समावेश होता रहता है हिन्दी भाषा में लगभग 85% शब्द भारतीय भाषाओं के हैं, तथा शेष 15% शब्द विभिन्न विदेशी भाषाओं के हैं।

शब्दों का वर्गीकरण

1. उत्पत्ति के आधार पर - किसी भी भाषा का शब्द-भंडार लम्बी परंपरा से निर्मित होता है अध्ययन के आधार पर शब्दों को पाँच स्रोतों से लाया माना जाता है।

तत्सम शब्द - जो शब्द संस्कृत भाषा से ज्यों के त्यो हिन्दी में ले लिए गए है वे शब्द तत्सम शब्द कहलाते हैं।  उदाहरणतया पुष्प, मुख, आम्र, अग्नि, रात्रि आदि।

तद्भव शब्द - ऐसे शब्द जो संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश के दौर से गुजर कर समय के साथ परिवर्तित होकर हिन्दी में प्रचलित है, वह तद्भव कहलाते हैं। उदाहारणतया - सात, साँप, घी, शक्कर, अंधेरा, आदि।

देशी या देशज शब्द - ऐसे शब्द जो भारत के ग्राम्य क्षेत्रों से या उनकी बोलियों से लिए गए हैं या जिनकी उत्पत्ति का पता न हो उदाहरणतया - झाडू, चीनी, टाँग, खाट, चपत, लोटा, डिब्बा आदि।

विदेशी या आगत शब्द - अंग्रेजी, अरबी, फारसी, तुर्की, पुर्तगाली आदि विदेशी भाषाओं के शब्द जो हिन्दी में प्रचलित हो गए हैं, वे शब्द विदेशी शब्द कहलाते है। जैसे-

  • अरबी-फारसी शब्द - कागज, कानून, लालटेन (लैन्टर्न से) खत, जिला, दरोगा आदि।
  • अग्रेजी शब्द - कमीशन, डायरी, पार्टी, क्रिकेट, फुटबाल, मोटर, आदि,
  • पुर्तगाली शब्द - कनस्तर, नीलाम, गमला, चाबी, फीता आदि।,
  • तुर्की शब्द - तोप, लाश, बेगम, सुराग, कालीन आदि।

संकर शब्द - दो भिन्न भाषाओं के शब्दों को मिलाकर जो नया शब्द बनता है, उसे संकर शब्द कहते हैं। उदाहरणतया –

  • हिन्दी और अरबी/फारसी -  थानेदार, घड़ीसाज
  • हिन्दी और संस्कृत -  वर्षगाँठ, पूँजीपति
  • अग्रेजी और अरबी/फारसी - अफसरशाही, बीमा पॉलिसी आदि।

तत्सम और तद्भव शब्दों को पहचानने और याद करने की ट्रिक और नियम

  • तत्सम शब्दों के अंत में क्ष वर्ण आता है वहीं उसके तद्भव रूप में क्ष स्थान में ख या वर्ण का प्रयोग होता है।
  • तत्सम शब्दों में जहां पर श्र का प्रयोग होता है वहीं तद्भव शब्द में श्रकी जगह का प्रयोग होता है।
  • तत्सम शब्दों में जहां पर का प्रयोग होता है वहीं तद्भव शब्द में व की जगह ब का प्रयोग होता है।
  • तत्सम शब्दों में वर्ण का प्रयोग किया जाता है।
  • तत्सम शब्दों में ऋ की मात्रा का प्रयोग होता है। वहीं तद्भव शब्दों में र की मात्रा का प्रयोग किया जाता है।

2. रचना के आधार पर -

रचना के आधार पर शब्द दो प्रकार के होते हैं। (1) मूल शब्द (2) व्युत्पन्न शब्द (यौगिक)

(i) मूल (रूढ़) शब्द - ऐसे शब्द जो किसी अन्य शब्द के योग से न बने हो, रूढ़ के खण्ड नहीं हो सकते है। उदाहरणतया - मकान, मजदूर, कलम आदि।

(ii) व्युत्पन्न शब्द - दो शब्दों या शब्दांशों के योग से बने शब्दों को व्युत्पन्न शब्द कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं (a) यौगिक (b) योगरूढ़

(a) यौगिक शब्द - जो शब्द किसी उपसर्ग प्रत्यय या अन्य किसी शब्द के मेल से बने हैं उन्हें यौगिक शब्द कहते हैं। जैसे – प्रधानमंत्री, अन्याय, नम्रता, पाठशाला।

(b) योगरूढ़ शब्द - जो शब्द दो या दो से अधिक शब्दों के योग से बने हैं लेकिन वह अपना अर्थ छोड़कर कोई विशेष अर्थ देने लगते हैं योगरूढ़ता शब्द कहलाते हैं। जैसे - चिड़ियाघर, चारपाई, लम्बोदर, गिरिधर, आदि।

प्रयोग के आधार पर

वाक्य में प्रयोग के आधार पर शब्द के दो भेद हैं- (क) सार्थक शब्द और (ख) निरर्थक शब्द।

(क) सार्थक शब्द: जिन शब्दों का कोई निश्चित अर्थ होता है, उन्हें सार्थक शब्द कहते हैं। जैसे विद्यालय, घर, पुस्तक आदि।

(ख) निरर्थक शब्द: जिन शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता है, उन्हें निरर्थक शब्द कहते हैं। जैसे-खट- खट, चूँ, वोटी, वानी आदि। किंतु कभी-कभी वाक्यों में इनका प्रयोग सार्थक शब्दों की तरह किया जाता है और तब वे कुछ अर्थ प्रकट करने लगते हैं।जैसे- खट-खट मत करो अर्थात आवाज मत करो। अरे भई, उसे पानी-वानी पिला दो।

रूपान्तरण या व्याकरिणक प्रकार्य के आधार पर शब्द के भेद: व्याकरण के अनुसार प्रयोग के आधार पर शब्द दो प्रकार के होते हैं- (क) विकारी शब्द और (ख) अविकारी शब्द।

(क) विकारी शब्द: जो शब्द लिंग, वचनकारक, काल आदि की दृष्टि से बदल जाते हैं, उन्हें विकारी शब्दकहते हैं। विकारी शब्द चार होते हैं- संज्ञा-सर्वनाम, विशेषण और क्रिया। इनके संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया। इनके रूप परिवर्तित हो जाते हैं। नारी, अच्छा, बालक, मैं आदि।

संज्ञा: नदी-नदियाँ-नदियों पहाड़-पहाड़ी-पहाड़ियाँ

सर्वनाम: मैं-मेरा-हम-हमारा जिसने, जिन्होंने

विशेषण: छोटा-छोटे-छोटी हरा-हरी-हरे

क्रिया: गया-गई-गए नहाता-नहाती-नहाते

(ख) अविकारी शब्द: जो शब्द लिंग, वचनकारक और काल आदि की दृष्टि से नहीं बदलते, उन्हें अविकारी शब्दकहते हैं।

अविकारी शब्द भी चार हैं- क्रियाविशेषण, संबंधबोधक, समुच्चय- बोधक, विस्मयादिबोधक । इनके रूप कभी परिवर्तित नहीं होते। उदाहरणतया-आज, कल, किन्तु, अरे, परन्तु आदि।

क्रियाविशेषण: मैं माता-पिता की सेवा आजीवन करूँगा। हम माता-पिता की सेवा आजीवन करेंगे।

संबंधबोधक: लकड़ी के बिना आग नहीं जलेगी। लकड़ियों के बिना आग नहीं जलेगीं

समुच्चयबोधक: अनुपमा और मंदाकिनी ने कपड़े खरीदे। श्रवण और अशोक ने कविता पढ़ी।

विस्मयादिबोधक: अरे! सजला आ गई। अरे!! योगेश आ गया।

इन वाक्यों में आए आजीवन, के बिना, और, अरे अविकारी शब्द हैं। इनके रूप  लिंग, वचन कारक आदि की दृष्टि से नहीं बदले।

अर्थ के आधार पर वर्गीकरण 1. एकार्थी शब्द 2. अनेकार्थी शब्द 3. समरूप भिन्नार्थक शब्द

1. एकार्थी शब्द - ये वह शब्द होते हैं, जिनका वाच्यार्थ एक उदाहरणतया - सम्राट, उत्तम, अहकार, छात्र, पीड़ा = दर्द, गृह = घर, नृत्य = नाच, सूर्य = सूरज आदि।

2. अनेकार्थी शब्द - ऐसे शब्द जिनके एक से अधिक अर्थ

उदाहरणतया - अवधि-सीमा, निर्धारित समय।

            अक्षर-ईश्वर, वर्ण, नष्ट न होने वाला,

            कला-गुण, युक्ति तरीका, शब्द  अर्थ

            पूर्व = एक दिशा, पहले

            घट = घड़ा, शरीर

            काल = मृत्यु, समय

            कर = हाथ, किरण, टैक्स

            तीर = किनारा, बाण

            कुल = वंश, सब

3. समरूप भिन्नार्थक शब्द - वह शब्द जो उच्चारण की दृष्टि से इतने मिलते-जुलते हैं कि वह एक जैसे ही लगते हैं, किन्तु उनका अर्थ पूर्णत भिन्न होता है।

उदाहरणतया - अणु कण, अकथ जो कहा न जा सके अनु पीछे, अथक- बिना थके।

वाक्यांश के स्थान पर एक शब्द: अनेक शब्दों के स्थान पर आने वाले एक शब्द को वाक्यांशबोधक शब्द भी कहते हैं। जैसे:

उपकार को मानने वाला = कृतज्ञ

उपकार को न मानने वाला = कृतघ्न

जो सरलता से प्राप्त होता है = सुलभ

समानाभासी शब्द युग्म: कुछ शब्द ऐसे होते  हैं, जिनकी वर्तनी में भिन्नता होते हुए भी उच्चारण में इतना कम अंतर होता है कि वे एक समान सुनाई देते हैं, परंतु उनके अर्थ सर्वथा भिन्न होते हैं। ऐसे शब्दों को समानाभासी शब्द-युग्म कहते हैं। जैसे:

शब्द      अर्थ

अन्न  =  अनाज

कुल  = वंश, सब

अन्य = दूसरा

कुल = किनारा, तट

पर्यायवाची शब्द - एक अर्थ को प्रकट करने वाले अनेक शब्दों को पर्यायवाची शब्द कहते हैं।

उदाहरणतया - जल-नीर, वारि, पानी                  आँख-दृग, लोचन, नेत्र,

            कमल: नीरज  जलज  वारिज            बादल: नीरद जलद वारिद

विलोम शब्द - ऐसे शब्द युग्म जो परस्पर विरोधी होते हैं, विपरीतार्थक कहलाते हैं।

उदाहरणतया - उन्नति-अवनति, प्राचीन-नवीन जीत-हार, भद्र-अभद्र, उन्नति = अवनति, उपकार = अपकार

सुलभ = दुर्लभ, निंदा = प्रशंसा, स्तुति, कृतज्ञ = कृतघ्न, हर्ष = विषाद

श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द (शब्द युग्म) - ये शब्द चार शब्दों से मिलकर बना है, श्रुति+सम+भिन्न +अर्थ, इसका अर्थ है। सुनने में समान लगने वाले किन्तु भिन्न अर्थ वाले दो शब्द अर्थात वे शब्द जो सुनने और उच्चारण करने में समान प्रतीत हों, किन्तु उनके अर्थ भिन्न-भिन्न हों, वे श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द कहलाते हैं।

ऐसे शब्द सुनने या उच्चारण करने में समान भले प्रतीत हों, किन्तु समान होते नहीं हैं, इसलिए उनके अर्थ में भी परस्पर भिन्नता होती है ; जैसे अवलम्ब और अविलम्ब। दोनों शब्द सुनने में समान लग रहे हैं, किन्तु वास्तव में समान हैं नहीं, अत: दोनों शब्दों के अर्थ भी पर्याप्त भिन्न हैं, ‘अवलम्बका अर्थ है सहारा, जबकि अविलम्ब का अर्थ है बिना विलम्ब के अर्थात शीघ्र

ये शब्द निम्न इस प्रकार से है

अंस अंश = कंधा हिस्सा

अंत अत्य = समाप्त नीच

अन्न -अन्य = अनाज -दूसरा

अभिराम -अविराम = सुंदर -लगातार

अम्बुज अम्बुधि = कमल -सागर

अनिल अनल = हवा -आग

अश्व अश्म = घोड़ा -पत्थर

अनिष्ट अनिष्ठ = हानि श्रद्धाहीन

अचर अनुचर = न चलने वाला नौकर

अमित अमीत = बहुत शत्रु

अभय उभय = निर्भय दोनों

अस्त अस्त्र = आँसू हथियार

असित अशित = काला भोथरा

अर्घ अर्घ्य = मूल्य पूजा सामग्री

अली अलि = सखी भौंरा

अवधि अवधी = समय अवध की भाषा

आरति आरती = दुःख धूप-दीप

आहूत आहुति = निमंत्रित होम

आसन आसन्न = बैठने की वस्तु निकट

आवास आभास = मकान झलक

आभरण आमरण = आभूषण मरण तक

आर्त्त आर्द्र = दुखी गीला

ऋत ऋतु = सत्य मौसम

कुल कूल = वंश किनारा

कंगाल कंकाल = दरिद्र हड्डी का ढाँचा

कृति कृती = रचना निपुण

कान्ति क्रान्ति = चमक उलटफेर

कलि कली = कलयुग अधखिला फूल

कपिश कपीश = मटमैला वानरों का राजा

कुच कूच = स्तन प्रस्थान

कटिबन्ध कटिबद्ध = कमरबन्ध तैयार / तत्पर

छात्र क्षात्र = विधार्थी क्षत्रिय

गण गण्य = समूह गिनने योग्य

चषक चसक = प्याला लत

चक्रवाक चक्रवात = चकवा पक्षी तूफान

जलद जलज = बादल कमल

तरणी तरुणी = नाव युवती

तनु तनू = दुबला पुत्र

दारु दारू = लकड़ी शराब

दीप द्वीप = दिया टापू

दिवा दीवा = दिन दीपक

देव दैव = देवता भाग्य

नत नित = झुका हुआ प्रतिदिन

नीर नीड़ = जल घोंसला

नियत निर्यात = निश्चित भाग्य

नगर नागर = शहर शहरी

निशित निशीथ = तीक्ष्ण आधी रात

नमित निमित = झुका हुआ हेतु

नीरद नीरज = बादल कमल

नारी नाड़ी = स्त्री नब्ज

निसान निशान = झंडा चिन्ह

निशाकर निशाचर = चन्द्रमा राक्षस

पुरुष परुष = आदमी कठोर

प्रसाद प्रासाद = कृपा महल

परिणाम परिमाण = नतीजा मात्रा 

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