6. पद व्यवस्था – शब्द और पद Pad Vyavastha - Pad aur Shabd
हिन्दी भाषा और अनुप्रयुक्त व्याकरण
खंड - क
6. पद व्यवस्था – शब्द और पद
पद-परिचय की परिभाषा –
जैसे हम अपना परिचय देते हैं, ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में
जितने शब्द होते हैं, उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक्य में प्रयुक्त प्रत्येक सार्थक शब्द को पद
कहते है तथा उन शब्दों के व्याकरणिक परिचय को पद-परिचय, पद-व्याख्या या पदान्वय कहते
है।
व्याकरणिक परिचय से तात्पर्य
है – वाक्य में उस पद की स्थिति बताना, उसका लिंग, वचन, कारक तथा अन्य पदों के साथ संबंध
बताना।
जैसे –
राजेश ने रमेश को पुस्तक दी।
राजेश = संज्ञा, व्यक्तिवाचक, पुल्लिंग, एकवचन, ‘ने’के साथ कर्ता कारक, द्विकर्मक क्रिया ‘दी’के साथ।
रमेश = संज्ञा, व्यक्तिवाचक, पुल्लिंग, एकवचन, कर्म कारक।
पुस्तक = संज्ञा, जातिवाचक, स्त्रीलिंग, एकवचन, कर्मकारक।
पद पाँच प्रकार के
होते हैं –
संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया तथा अव्यय।
इन सभी पदों का परिचय
देते समय हमें निम्नलिखित बिन्दुओं का ध्यान रखना चाहिए।
पद पद-परिचय
1 संज्ञा संज्ञा के भेद (व्यक्तिवाचक, जातिवाचक, भाववाचक), लिंग, वचन, कारक, क्रिया का ‘कर्ता’है?/क्रिया का ‘कर्म’ है?
2 सर्वनाम
सर्वनाम के भेद (पुरुषवाचक, निश्चयवाचक, अनिश्चयवाचक, प्रश्नवाचक, संबंधवाचक, निजवाचक), लिंग, वचन, कारक, क्रिया का ‘कर्ता/क्रिया का
‘कर्म’।
3 विशेषण विशेषण
के भेद (गुणवाचक, संख्यावाचक, सार्वनामिक, परिमाणवाचक), अवस्था (मूलावस्था, उत्तरावस्था, उत्तमावस्था), लिंग, वचन, विशेष्य।
4 क्रिया क्रिया
के भेद, लिंग, वचन, पुरुष, धातु, काल, वाच्य, क्रिया का ‘कर्ता’ कौन है? क्रिया का ‘कर्म’ कौन है?
5 अव्यय क्रिया विशेषण
भेद, उपभेद, विशेष्य-क्रिया का
निर्देश।
पद परिचय कैसे पहचानते
है? –
सबसे पहले आपको संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, क्रिया-विशेषण, अवधारक (निपात), संबंधबोधक, समुच्चयबोधक, विस्मयादिबोधक आदि
के बारे में जानकारी होनी चाहिए।
इसके बारे में संक्षिप्त
जानकारी नीचे दी गई है-
1 – अगर शब्द किसी व्यक्ति, वस्तु, प्राणी, पक्षी, भाव, जाति आदि के बारे
में बताता है, तो वह शब्द संज्ञा है।
2 – अगर शब्द किसी संज्ञा
के स्थान पर शब्द का प्रयोग जैसे मेरा, मै, तुम, आपका, उस, वह आदि शब्द है, तो वह शब्द सर्वनाम
है।
3 – अगर शब्द किसी वस्तु, स्थान, पशु, पक्षी आदि की विशेषता
बताता है, अर्थात वह कैसा है – लंबा है, सुंदर है, डरावना है आदि, तो वह शब्द विशेषण
है।
4 – अगर शब्द वाक्य में
जो क्रिया है उसकी विशेषता बताता है, तो वह क्रिया विशेषण है। जैसे कि – क्रिया कब हो रही
है (कल, अभी, दिनभर), क्रिया कैसे हो रही है (चुपचाप, अवश्य, तेजी से), क्रिया कहाँ हो रही
है (अंदर, ऊपर, आसपास), क्रिया कितनी मात्रा में हो रही है (कम, पर्याप्त, ज्यादा)
5 – अगर शब्द किसी दो
या अधिक संज्ञा और सर्वनाम के बीच का संबंध दर्शाता है, तो वह संबंधबोधक
अव्यय है।
जैसे – के पास, के ऊपर, से दूर, के कारण, के लिए, की ओर।
6 – अगर शब्द किसी दो
वाक्यों के बीच का संबंध दर्शाता है, तो वह समुच्चयबोधक अव्यय है।
जैसे – और, अतएव, इसलिए, लेकिन।
7 – अगर शब्द किसी विस्मय, हर्ष, घृणा, दुःख, पीड़ा आदि भावों
को प्रकट करते है, तो वह विस्मयादिबोधक अव्यय है।
जैसे – अरे!, वाह!, अच्छा! आदि।
8 – अगर शब्द किसी बात
पर ज्यादा भार दर्शाता है, तो वह निपात है।
जैसे – भी, तो, तक, केवल, ही।
उदाहरण के लिए कुछ
वाक्य निचे दिए जा रहे हैं, जिनमें कुछ शब्द रेखांकित किए गए हैं। आपको इन रेखांकित
पदों के पद परिचय दिया गया है।
1) आज समाज में विभीषणों
की कमी नहीं है।
विभीषणों (देशद्रोहियों)
– संज्ञा (जातिवाचक), बहुवचन, पुल्लिंग, संबंध कारक (कारक
‘की)
2) रात में देर तक
बारिश होती रहीं।
देर तक – क्रिया-विशेषण (कालवाचक)
3) हर्षिता निबंध
लिख रही है।
लिख रही है – क्रिया (संयुक्त), स्त्रीलिंग, एकवचन, धातु ‘लिख’, वर्तमान काल, क्रिया का कर्ता
‘हर्षिता’, क्रिया का कर्म ‘निबंध’
4) इस पुस्तक में
अनेक चित्र है ।
अनेक – विशेषण (अनिश्चित
संख्यावाचक), बहुवचन, पुल्लिंग, विशेष्य ‘चित्र ‘
5) गांधीजी आजीवन
मानवता की सेवा करते रहे ।
आजीवन – क्रिया-विशेषण (कालवाचक)
संज्ञा शब्द का पद परिचय
किसी भी संज्ञा पद
के पद परिचय हेतु निम्न 5 बातें बतलानी होती है –
(1) संज्ञा का प्रकार
(2) उसका लिंग
(3) वचन
(4) कारक तथा
(5) उस शब्द का क्रिया
के साथ सम्बन्ध
संज्ञा शब्द का क्रिया
के साथ सम्बन्ध ‘कारक’के अनुसार जाना जा सकता है।
राम पुस्तक पढ़ता
है।
उक्त वाक्य में राम
तथा ‘पुस्तक’शब्द संज्ञाएँ हैं।
यहाँ इनका पद परिचय उक्त पाँचों बातों के अनुसार निम्नानुसार होगा –
राम – व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एक वचन, कर्ता कारक, ‘पढ़ता है’क्रिया का कर्ता।
पुस्तक – जातिवाचक संज्ञा, स्त्रीलिंग, एकवचन, कर्म कारक, ‘पढ़ता है’क्रिया का कर्म।
सर्वनाम शब्द का पद परिचय
किसी सर्वनाम के
पद परिचय निम्नलिखित बातों का उल्लेख करना होता है –
(1) सर्वनाम का प्रकार
पुरुष सहित
(2) लिंग
(3) वचन
(4) कारक
(5) क्रिया के साथ
सम्बन्ध आदि।
यह उसकी वही कार
है, जिसे कोई चुराकर
ले गया था।
इस वाक्य में ‘यह, ‘उसकी, ‘जिसे, तथा ‘कोई’पद सर्वनाम है। इनका
पद परिचय इस प्रकार होगा-
यह – निश्चयवाचक सर्वनाम, अन्य पुरुष, स्त्रीलिंग, एक वचन, सम्बन्ध कारक, ‘कार’ संज्ञा शब्द से सम्बन्ध।
जिसे – सम्बन्धवाचक सर्वनाम, स्त्रीलिंग, एकवचन कर्मकारक, ‘चुराकर ले गया’ क्रिया का कर्म।
कोई – अनिश्चयवाचक सर्वनाम, अन्यपुरुष, पुल्लिंग एकवचन, कर्ता कारक, ‘चुराकर ले गया’ क्रिया का कर्ता।
विशेषण शब्द का पद परिचय
किसी विशेषण शब्द
के पद परिचय हेतु निम्न बातों का उल्लेख करना होता है-
(1) विशेषण का प्रकार
(2) अवस्था
(3) लिंग
(4) वचन
(5) विशेष्य व उसके
साथ सम्बन्ध।
वीर राम ने सब राक्षसों
का वध कर दिया।
उक्त वाक्य में ‘वीर’तथा ‘सब शब्द विशेषण हैं, इनका पद-परिचय निम्नानुसार
होगा –
वीर – गुणवाचक विशेषण, मूलावस्था, पुल्लिंग, एकवचन, ‘राम’ विशेष्य के गुण का
बोध कराता है।
सब – संख्यावाचक विशेषण, मूलावस्था, पुल्लिंग, बहुवचन, ‘राक्षसों’ विशेष्य की संख्या
का बोध कराता है।
क्रिया शब्द का पद
परिचय
क्रिया शब्द के पद
परिचय में क्रिया का प्रकार, लिंग, वचन, वाच्य, काल तथा वाक्य में
प्रयुक्त अन्य शब्दों के साथ सम्बन्ध को बतलाया जाता है।
राम ने रावण को मारा।
मारा – क्रिया, सकर्मक, पुल्लिंग, एकवचन, कर्तृवाच्य, भूतकाल। ‘मारा’ क्रिया का कर्ता
राम तथा कर्म रावण।
मैं सवेरे उठा।
उठा – क्रिया, अकर्मक, पुल्लिंग, एकवचन, कर्तृवाच्य, भूतकाल। उठा क्रिया
का कर्ता मैं, कर्म अन्वित।
अव्यय शब्द का पद परिचय
अव्यय शब्द चूंकि
लिंग, वचन, कारक आदि से प्रभावित
नहीं होता, अतः इनके पद परिचय में केवल अव्यय शब्द के प्रकार, उसकी विशेषता या
सम्बन्ध ही बताया जाता है।
(1) क्रियाविशेषण
– क्रियाविशेषण के
भेद (रीतिवाचक, स्थानवाचक, कालवाचक, परिमाणवाचक) उस क्रिया
का उल्लेख, जिसकी विशेषता बताई जा रही हो।
मैं भीतर बैठी थी
और बच्चे धीरे-धीरे पढ़ रहे थे।
भीतर – क्रियाविशेषण, स्थानवाचक क्रियाविशेषण, ‘बैठी’क्रिया के स्थान
की विशेषता।
धीरे-धीरे – क्रियाविशेषण, रीतिवाचक क्रियाविशेषण, ‘पढ़ रहे थे’क्रिया की रीति की
विशेषता।
(2) संबंधबोधक – संबंधबोधक के भेद, किस संज्ञा/सर्वनाम
से संबंद्ध है।
कुरसी के नीचे बिल्ली
बैठी है।
के नीचे – संबंधबोधक, ‘कुरसी’ और ‘बिल्ली’ इसके संबंधी शब्द
हैं।
(3) समुच्चयबोधक
– भेदों का उल्लेख, जुड़ने वाले पदों
का उल्लेख।
तुम कॉपी और किताब
ले लो लेकिन फाड़ना नहीं।
और – समुच्चयबोधक (समानाधिकरण)
कॉपी-किताब शब्दों का संबंध करने वाला।
लेकिन – भेद दर्शक (विरोध-दर्शक)
तुम…………ले लो तथा ‘फाड़ना नहीं इन दो
वाक्यों को जोड़ता है।
(4) विस्मयादिबोधक
– भेदों और भावों का
उल्लेख।
वाह! कितना सुंदर
बग़ीचा है। ठीक! मैं रोज़ आऊँगा।
वाह! – विस्मयादिबोधक, हर्ष – उल्लास
ठीक! – विस्मयादिबोधक, स्वीकार बोधक
कुछ अतिरिक्त उदाहरण
–
(1) अपने गाँव की
मिट्टी छूने के लिए मै तरस गया ।
अपने – विशेषण (सार्वनामिक), एकवचन, पुल्लिंग, विशेष्य ‘गाँव’
गाँव की – संज्ञा (जातिवाचक), एकवचन, पुल्लिंग, संबंधकारक (कारक
‘की’)
मिट्टी – संज्ञा (द्रव्यवाचक)
मैं – सर्वनाम (उत्तम पुरुष), एकवचन, पुल्लिंग, ‘तरस गया’क्रिया का कर्ता
तरस गया – क्रिया (अकर्मक, संयुक्त), भूतकाल, एकवचन, पुल्लिंग, कर्तृवाच्य, कर्ता “मै”
(2) निर्धन लोगो
की ईमानदारी देखो ।
निर्धन – विशेषण (गुणवाचक), बहुवचन, पुल्लिंग, विशेष्य ‘लोगो’
लोगो की – संज्ञा (जातिवाचक), बहुवचन, पुल्लिंग, संबंध कारक (कारक
‘की’)
ईमानदारी – संज्ञा (भाववाचक), कर्म कारक, ‘देखो’ क्रिया का कर्म
देखो – क्रिया (सकर्मक), बहुवचन, धातु ‘देख’, वर्तमानकाल, क्रिया का कर्म ‘ईमानदारी’
(3) यह पुस्तक मेरे
मित्र की है।
यह – विशेषण (सार्वनामिक), एकवचन, स्त्रीलिंग, विशेष्य ‘पुस्तक’
पुस्तक – संज्ञा (जातिवाचक), एकवचन, स्त्रीलिंग, कर्म कारक, ‘है’ क्रिया का कर्म
मेरे – सर्वनाम (पुरुषवाचक
– उत्तम पुरुष), पुल्लिंग, एकवचन, संबंधकारक
मित्र की – संज्ञा (जातिवाचक), एकवचन, पुल्लिंग, संबंध कारक (कारक
‘की), ‘है’ क्रिया से संबंध
है – क्रिया, वर्तमानकाल, एकवचन
(4) नेहा यहाँ इसी
मकान में रहती है।
नेहा – संज्ञा (व्यक्तिवाचक
संज्ञा), स्त्रीलिंग,एकवचन, करता कारक, ‘नेहा’रहना क्रिया की कर्ता
है
यहाँ – क्रिया विशेषण (स्थानवाचक
क्रिया विशेषण)
इसी – विशेषण (सार्वनामिक), पुल्लिंग, एकवचन, विशेष्य – ‘मकान’
मकान में – संज्ञा (जातिवाचक), पुल्लिंग, एकवचन, अधिकरण कारक (कारक
‘में), मकान ‘रहना’क्रिया का कर्म है
रहती है – क्रिया (सकर्मक), स्त्रीलिंग, एकवचन, अन्य पुरुष, वर्तमानकाल, कर्तृवाच्य, ‘रहती है ‘क्रिया की कर्ता
‘नेहा’ और कर्म ‘मकान’है
(5) अरे वाह! तुम
भी पुस्तक पढ़ सकते हो।
अरे वाह! – विस्मयादिबोधक, आश्चर्य का भाव
तुम – सर्वनाम (मध्यमपुरुष), एकवचन, पुल्लिंग, कर्ताकारक, ‘पढ़ सकते हो’ क्रिया का कर्ता
है
भी – निपात
पुस्तक – संज्ञा (जातिवाचक), स्त्रीलिंग, एकवचन, कर्मकारक, पुस्तक ‘पढ़ सकते हो’क्रिया का कर्म है
पढ़ सकते हो – क्रिया (सकर्मक), पुल्लिंग, एकवचन, अन्य पुरुष, वर्तमानकाल, कर्तृवाच्य, क्रिया का कर्ता
तुम व कर्म पुस्तक
संज्ञा एवं संज्ञा भेद
परिभाषा - किसी जाति, द्रव्य, गुण, भाव, व्यक्ति, स्थान और क्रिया
आदि के नाम को संज्ञा कहते हैं।
जैसे - पशु (जाति), सुन्दरता (गुण), व्यथा (भाव), मोहन (व्यक्ति), दिल्ली (स्थान), मारना (क्रिया)।
संज्ञा के भेद
:-
1. व्यक्तिवाचक संज्ञा
2. जातिवाचक संज्ञा
3. भाववाचक संज्ञा
संज्ञा के भेदों
का विवरण-
1. व्यक्तिवाचक संज्ञा
:- जिस शब्द से किसी एक विशेष व्यक्ति, प्राणी, वस्तु या स्थान का
बोध होता है । जैसे-
मुनष्यों के नाम-
प्रियंका, मुकेश, कैलाश, प्रशांत, निशांत, अंजू, सुधा, वीणा इत्यादि
प्राणियों के नाम-
कामधेनू (गाय का नाम), एरावत (हाथी का नाम)
वस्तुओं के नाम-
मिर्च (मसाला का नाम), गांडीव (घनुष का नाम)
स्थानों के नाम-
पटना, भोपाल, लखनऊ, दिल्ली, हरिद्वार, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब इत्यादि
2. जातिवाचक संज्ञा-
जिस शब्द का संबंध जाति से हो । जैसे- मनुष्य, नदी, पहाड़, नगर, राज्य, देश इत्यादि ।
3. भाववाचक संज्ञा
:- जिन संज्ञा शब्दों से किसी वस्तु या व्यक्ति के गुण-धर्म,दोष, शील, स्वभाव, अवस्था, भाव इत्यादि का बोध
होता है । जैसे- सुंदरता, प्यार, ईमानदारी, बचपन, क्रोध इत्यादि ।
नोट- जातिवाचक संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण और अव्यय
से भी भाववाचक बनाए जाते हैं ।
जैसे- दोस्त से दोस्ती, अहं से अहंकार, ऊपर से ऊपरी इत्यादि।
लिंग (Gender)
परिभाषा :- जिस चिह्न
से यह बोध होता हो कि अमुक शब्द पुरुष जाति का है अथवा स्त्री जाति का वह लिंग कहलाता
है ।
शब्द के जिस रूप
से किसी व्यक्ति, वस्तु आदि के पुरुष जाति अथवा स्त्री जाति के होने
का ज्ञान हो उसे लिंग कहते हैं । जैसे- बाघ, बाघिन, लड़का, लड़की इत्यादि । इनमें बाघ और लड़का
पुल्लिंग तथा बाघिन और नारी स्त्रीलिंग हैं।
लिंग के भेद :- 1. पुल्लिंग - जिन संज्ञा
शब्दों से पुरुष जाति का बोध हो अथवा जो शब्द पुरुष जाति के अंतर्गत माने जाते हैं
वे पुल्लिंग हैं । जैसे- शेर, पेड़, बैल, घर, बालक इत्यादि ।
2. स्त्रीलिंग - जिन
संज्ञा शब्दों से स्त्री जाति का बोध हो अथवा जो शब्द स्त्री जाति के अंतर्गत माने
जाते हैं, वे स्त्रीलिंग हैं । जैसे- नारी, छड़ी, गाय, घड़ी, लड़की, कुर्सी इत्यादि ।
पुल्लिंग की पहचान-1. आ, आव, पा, पन, न - ये प्रत्यय जिन
शब्दों के अंत में हों वे प्रायः पुल्लिंग होते हैं ।
जैसे- कपड़ा, चढ़ाव, बुढ़ापा, लड़कपन, लेन-देन ।
2. पर्वत, मास, वार और कुछ ग्रहों
के नाम पुल्लिंग होते हैं ।
जैसे- हिमालय, विंध्याचल, वैशाख, सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, राहु, केतु ।
3. पेड़ों के नाम पुल्लिंग होते हैं । जैसे- आम, शीशम, सागौन, जामुन, बरगद इत्यादि ।
4. अनाजों के नाम पुल्लिंग होते हैं । जैसे- गेहूँ, चावल, चना, मटर, जौ, उड़द आदि ।
5. द्रव पदार्थों के नाम पुल्लिंग होते हैं । जैसे-
पानी, सोना, ताँबा, लोहा, घी, तेल आदि ।
अपवाद- चांदी ।
6. रत्नों के नाम पुल्लिंग होते हैं । जैसे- हीरा, पन्ना, मूँगा, मोती आदि ।
7. शरीर के अंगों के नाम सामान्यत: पुल्लिंग होते हैं
।
जैसे- सिर, मस्तक, दाँत, मुख, कान, गला, हाथ, पाँव, होंठ, तालु, नख, रोम आदि ।
अपवाद- आँख
8. जल, स्थान और भू-मंडल के भागों के नाम पुल्लिंग होते
हैं।
जैसे- समुद्र, भारत, देश, नगर, द्वीप, आकाश, पाताल, घर, सरोवर आदि ।
स्त्रीलिंग की पहचान - 1. जिन संज्ञा शब्दों
के अंत में ख होते है, वे स्त्रीलिंग कहलाते
हैं ।
जैसे- आँख, भूख, चोख, राख, कोख, लाख, देखरेख आदि ।
2. जिन भाववाचक संज्ञाओं
के अंत में ट, वट, या हट होता है, वे स्त्रीलिंग कहलाती हैं ।
जैसे- झंझट, आहट, चिकनाहट, बनावट, सजावट आदि ।
3.अनुस्वारांत, ईकारांत, ऊकारांत, तकारांत, सकारांत संज्ञाएँ स्त्रीलिंग कहलाती है । जैसे-
रोटी, टोपी, नदी, चिट्ठी, उदासी, रात, बात, छत, भीत, लू, बालू, दारू, सरसों, खड़ाऊँ, प्यास, वास, साँस आदि ।
4. भाषा, बोली और लिपियों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं ।
जैसे- मैथिली, हिन्दी, संस्कृत, देवनागरी, पहाड़ी, तेलुगु, पंजाबी, गुरुमुखी ।
5. जिन शब्दों के अंत
में इया आता है वे स्त्रीलिंग होते हैं । जैसे-
कुटिया, खटिया, चिड़िया आदि ।
6. नदियों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं । जैसे- नर्मदा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती आदि ।
7. तारीखों और तिथियों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं
। जैसे- पहली, दूसरी, प्रतिपदा, पूर्णिमा आदि ।
शब्दों का लिंग-परिवर्तन
पुल्लिंग स्त्रीलिंग पुल्लिंग स्त्रीलिंग
घोड़ा घोड़ी देवर देवरानी
देव देवी सेठ सेठानी
दादा दादी जेठ जेठानी
लड़का लड़की पंडित पंडिताइन
ब्राह्मण ब्राह्मणी ठाकुर ठाकुराइन
नर नारी बाल बाला
बकरा बकरी सुत सुता
चूहा चुहिया छात्र छात्रा
चिड़ा चिड़िया शिष्य शिष्या
बेटा बिटिया पाठक पाठिका
गुड्डा गुड़िया अध्यापक
अध्यापिका
लोटा लुटिया बालक बालिका
माली मालिन लेखक लेखिका
कहार कहारिन सेवक सेविका
सुनार सुनारिन तपस्वी तपस्विनी
लुहार लुहारिन हितकारी हितकारिनी
धोबी धोबिन स्वामी स्वामिनी
मोर मोरनी परोपकारी परोपकारिनी
हाथी हाथिन नौकर नौकरानी
सिंह सिंहनी चौधरी चौधरानी
वैसे प्राणिवाचक
शब्द जो हमेशा ही स्त्रीलिंग हैं या पुल्लिंग हैं उन्हें पुल्लिंग अथवा स्त्रीलिंग
जताने के लिए उनके साथ‘नर’ व ‘मादा’ शब्द लगा देते हैं । जैसे-
पुल्लिंग स्त्रीलिंग पुल्लिंग स्त्रीलिंग
नर मक्खी मक्खी नर
मैना मैना
नर कोयल कोयल नर
तितली तितली
नर गिलहरी गिलहरी मादा
बाज बाज
मादा खटमल खटमल नर
कौआ कौआ
नर चील चील मादा
भेड़िया भेड़िया
नर कछुआ कछुआ मादा
उल्लू उल्लू
मादा मच्छर मच्छर
वचन
परिभाषा - शब्द के जिस रुप
से एक या अनेक का बोध होता है उसे वचन कहते हैं ।
वचन दो होते हैं-
1. एकवचन 2. बहुवचन
एकवचन - शब्द के
जिस रूप से एक ही वस्तु का बोध हो, उसे एकवचन कहते हैं
।
जैसे- बच्चा, कपड़ा, माता, लड़का, गाय, माला, पुस्तक, स्त्री, टोपी इत्यादि ।
बहुवचन - शब्द के जिस रूप से एक से अधिक का बोध
हो उसे बहुवचन कहते हैं ।
जैसे- लड़के, गायें, कपड़े, टोपियाँ, मालाएँ, पुस्तकें, वधुएँ, गुरुजन, रोटियाँ इत्यादि
।
एकवचन के स्थान पर
बहुवचन का प्रयोग
(I) आदर के लिए भी बहुवचन का प्रयोग होता है।
जैसे- शिवाजी सच्चे वीर थे ।
(II) बड़प्पन दर्शाने के लिए कुछ लोग वह के स्थान पर
वे और मैं के स्थान हम का प्रयोग करते हैं
जैसे- मालिक ने कर्मचारी से कहा, हम मीटिंग में जा रहे हैं ।
(III) केश, रोम, अश्रु, प्राण, दर्शन, लोग, दर्शक, समाचार, दाम, होश, भाग्य इत्यादि ऐसे शब्द हैं जिनका प्रयोग बहुधा
बहुवचन में ही होता है ।
जैसे- होश उड़ गए ।
बहुवचन के स्थान
पर एकवचन का प्रयोग
(I) तू एकवचन है जिसका बहुवचन है तुम किन्तु सभ्य लोग
आजकल लोक-व्यवहार में एकवचन के लिए तुम का ही प्रयोग करते हैं ।
जैसे- क्या तुमने खाना खा लिया ।
(II) वर्ग, वृंद, दल, गण, जाति आदि शब्द अनेकता को प्रकट करने वाले हैं, किन्तु इनका व्यवहार
एकवचन के समान होता है।
जैसे- स्त्री जाति संघर्ष कर रही है ।
(III) जातिवाचक शब्दों का प्रयोग एकवचन में किया जा सकता
है।
जैसे- महाराष्ट्र का आम स्वादिष्ट होता है
बहुवचन बनाने के
नियम
(I) अकारांत स्त्रीलिंग शब्दों के अंतिम अ को एँ कर
देने से शब्द बहुवचन में बदल जाते हैं। जैसे-
एकवचन बहुवचन
सड़क
सड़कें
गाय
गायें
बात
बातें
आँख आँखें
बहन
बहनें
पुस्तक
पुस्तकें
(II) आकारांत पुल्लिंग शब्दों के अंतिम आ को ए कर देने
से शब्द बहुवचन में बदल जाते हैं। जैसे-
एकवचन बहुवचन एकवचन बहुवचन
केला केले बेटा बेटे
घोड़ा घोड़े कौआ कौए
कुत्ता कुत्ते गधा गधे
(III) आकारांत स्त्रीलिंग शब्दों के अंतिम आ के आगे एँ
लगा देने से शब्द बहुवचन में बदल जाते हैं। जैसे-
एकवचन बहुवचन
एकवचन बहुवचन
कन्या कन्याएँ अध्यापिका अध्यापिकाएँ
कला कलाएँ माता माताएँ
कविता कविताएँ लता लताएँ
(IV) इकारांत अथवा ईकारांत स्त्रीलिंग शब्दों के अंत
में याँ लगा देने से और दीर्घ ई को ह्रस्व
इ कर देने से शब्द बहुवचन में बदल जाते हैं। जैसे-
एकवचन बहुवचन एकवचन बहुवचन
बुद्धि बुद्धियाँ गति गतियाँ
कली कलियाँ
नीति नीतियाँ
कॉपी
कॉपियाँ लड़की लड़कियाँ
थाली थालियाँ नारी नारियाँ
(V) जिन स्त्रीलिंग शब्दों के अंत में या है उनके अंतिम
आ को आँ कर देने से वे बहुवचन बन जाते हैं। जैसे-
एकवचन
बहुवचन एकवचन बहुवचन
गुड़िया गुड़ियाँ बिटिया
बिटियाँ
चुहिया चुहियाँ कुतिया कुतियाँ
चिड़िया चिड़ियाँ खटिया खटियाँ
बुढ़िया बुढ़ियाँ गैया गैयाँ
(VI) कुछ शब्दों में अंतिम
उ, ऊ और औ के साथ एँ
लगा देते हैं और दीर्घ ऊ के साथ न पर ह्रस्व उ हो जाता है। जैसे-
एकवचन बहुवचन एकवचन बहुवचन
गौ गौएँ बहू बहूएँ
वधू वधूएँ वस्तु वस्तुएँ
धेनु धेनुएँ धातु धातुएँ
(VII) दल, वृंद, वर्ग, जन लोग, गण इत्यादि शब्द जोड़कर भी शब्दों का बहुवचन बना
देते हैं। जैसे-
एकवचन बहुवचन एकवचन बहुवचन
अध्यापक अध्यापकवृंद मित्र मित्रवर्ग
विद्यार्थी विद्यार्थीगण सेना सेनादल
आप आप लोग गुरु गुरुजन
श्रोता श्रोताजन गरीब गरीब लोग
(VIII) कुछ शब्दों के रूप एकवचन और बहुवचन दोनो में समान होते हैं। जैसे-
एकवचन बहुवचन एकवचन बहुवचन
क्षमा क्षमा
नेता नेता
जल जल प्रेम प्रेम
गिरि गिरि
क्रोध क्रोध
राजा राजा पानी पानी
(IX) जब संज्ञाओं के साथ ने, को, से आदि परसर्ग लगे
होते हैं तो संज्ञाओं का बहुवचन बनाने के लिए उनमें ओ लगाया जाता है। जैसे-
एकवचन बहुवचन एकवचन बहुवचन
लड़के को बुलाओ । लड़को को बुलाओ । बच्चे ने गाना गाया । बच्चों ने गाना गाया ।
नदी का जल ठंडा है। नदियों का जल ठंडा है । आदमी से पूछ लो । आदमियों से पूछ लो ।
(X) संबोधन में ओ जोड़कर बहुवचन बनाया जाता है।
जैसे- भाइयों ! मेहनत करो ।
कारक
कारक शब्द का अर्थ
होता है- क्रिया को करने वाला।
वाक्य में क्रिया
को पूरा कराने में अनेक संज्ञा शब्द संलग्न होते हैं। इन संज्ञाओं के क्रिया शब्दों
के साथ कई प्रकार के संबंध होते हैं। इन्हीं संबंधों को व्यक्त करने वाली व्याकरणिक
कोटी कारक कहलाती है।
दूसरे शब्दों में, कारक उसे कहते हैं
जो वाक्य में आए संज्ञा आदि शब्दों का क्रिया के साथ संबंध बताती है।
जैसे- राम ने किताब
पढ़ी।
इस वाक्य में ‘राम’ पढ़ना क्रिया का
कर्ता है और किताब उसका कर्म । यानी ‘राम’ कर्ता कारक है और ‘किताब’ कर्म कारक ।
कारक के प्रकार
- कारक के आठ प्रकार
होते हैं।
हर की अपनी विभक्तियां
होती हैं यानी वो चिह्न जिससे संज्ञा और क्रिया का संबंध तय होता है-
कारक विभक्तियां
1. कर्ता ने (या कभी-कभी बिना चिह्न के)
2. कर्म को
3. करण से, के द्वारा, के साथ
4. संप्रदान को, के लिए
5. अपादान से (अलग होने का सूचक)
6. संबंध में, पर
7. अधिकरण का, की, के, रा, री, रे, ना, नी, ने
8. संबोधन अरे, अरी, रे, ओ, हे, री
विस्तार से –
1. कर्ता कारक - कर्ता शब्द का अर्थ है- करने
वाला।
दूसरे शब्दों में, जिस रूप से क्रिया (कार्य) के
करने वाले का बोध होता है वह कर्ता कारक कहलाता है। इसका विभक्ति-चिह्न ‘ने’ है। ‘ने’ चिह्न का वर्तमान काल और भविष्य
काल में प्रयोग नहीं होता है । इसका सकर्मक धातुओं के साथ भूतकाल में प्रयोग होता है
।
जैसे- राम ने रावण को मारा ।
इस वाक्य में क्रिया का कर्ता
राम है। इसमें ‘ने’ कर्ता कारक का विभक्ति-चिह्न
है । इस वाक्य में ‘मारा’ भूतकाल की क्रिया है। ‘ने’ का प्रयोग प्रायः भूतकाल में
होता है ।
i. भूतकाल में अकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ भी ने चिह्न नहीं लगता है । जैसे-
वह हँसा।
ii. वर्तमान काल एंव भविष्यत काल की सकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ ने चिह्न का
प्रयोग नहीं होता है। जैसे- वह फल खाता है । वह फल खाएगा ।
iii. कभी-कभी कर्ता के साथ‘को’ तथा‘स’का प्रयोग भी किया जाता है।
(क) बालक
को सो जाना चाहिए ।
(ख) सीता
से पुस्तक पढ़ी गई ।
(ग) रोगी से चला भी नहीं जाता ।
2. कर्म कारक
क्रिया के कार्य का फल जिस पर
पड़ता है, वह कर्म कारक कहलाता है। इस कारक का चिह्न‘को’ है । यह चिह्न भी बहुत-से स्थानों
पर नहीं लगता ।
जैसे- मोहन ने साँप को मारा । लड़की ने पत्र लिखा ।
पहले वाक्य में‘मारा’ क्रिया है और साँप कर्म है ।
क्योंकि मारने की क्रिया का फल साँप पर पड़ा है । अतः साँप कर्म कारक है ।
दूसरे वाक्य में‘लिखने’की क्रिया का फल पत्र पर पड़ा
। अतः पत्र कर्म कारक है । इसमें कर्म कारक का चिह्न‘को’ नहीं लगा है।
3. करण कारक - करण का अर्थ है-
साधन ।
वाक्य की क्रिया को संपन्न करने
के लिए जिस निर्जीव संज्ञा का प्रयोग साधन के रूप में किया जाता है, वह संज्ञा करण कारक कही जाती
है । इसका कारक चिह्न‘से’ के‘द्वारा’ है।
जैसे-
1. अर्जुन ने जयद्रथ को बाण से
मारा । 2. बालक गेंद से खेल रहे हैं ।
पहले वाक्य में कर्ता अर्जुन
ने मारने का कार्य‘बाण’ से किया । अतः‘बाण से’ करण कारक है । दूसरे वाक्य में
कर्ता बालक खेलने का कार्य‘गेंद’ से कर रहे हैं । अतः‘गेंद से’ करण कारक है ।
4. संप्रदान कारक
संप्रदान का अर्थ है- देना ।
यानी कर्ता जिसके लिए कुछ कार्य
करता है, अथवा जिसे कुछ देता है । इस कारक
का चिह्न‘के लिए’ को हैं । जैसे-
पुण्य के लिए वह सेवा कर रहा
है ।
इस वाक्य में‘पुण्य के लिए ’ संप्रदान कारक हैं।
5. अपादान कारक
जब वाक्य की किसी संज्ञा के क्रिया
के द्वारा अलग होने, तुलना होने या दूरी होने का भाव प्रकट होता है वहां अपादान कारक होता है ।
इस कारक का चिह्न‘से’ है ।
जैसे- पेड़ से फल गिरा ।
इस वाक्य में पेड़ से फल का गिरना
ये बताता है कि पेंड से फल अलग हुआ है ।
यानी इस वाक्य में पेड़ से अपादानकारक
है ।
6. संबंध कारक
शब्द के जिस रूप से किसी एक वस्तु
का दूसरी वस्तु से संबंध प्रकट हो वह संबंध कारक कहलाता है । इस कारक का चिह्न‘का, के, की,रा,रे,री’ है । जैसे- यह राधेश्याम का बेटा
है ।
इस वाक्य में ‘राधेश्याम का बेटा’ से संबंध प्रकट हो रहा है । अतः
यहाँ संबंध कारक है ।
7. अधिकरण कारक - शब्द के जिस
रूप से क्रिया के आधार का बोध होता है उसे अधिकरण कारक कहते हैं। इस कारक का चिह्न‘में’, ‘पर’ हैं ।
जैसे-
कमरे में टीवी रखा है ।
कमरे में अधिकरण कारक है । क्योंकि इससे रखने की क्रिया के
आधार का पता चलता है ।
8. संबोधन कारक
जिससे किसी को बुलाने या सचेत
करने का भाव प्रकट हो उसे संबोधन कारक कहते है ।
संबोधन चिह्न ( ! ) लगाया जाता
है ।
जैसे-
अरे भैया ! क्यों रो रहे हो ?
हे गोपाल ! यहाँ आओ ।
सर्वनाम एवं सर्वनाम के भेद
परिभाषा :- सर्व का अर्थ है सबका
यानी जो शब्द सब नामों (संज्ञाओं) के स्थान पर प्रयुक्त हो सकते हैं, सर्वनाम कहलाते हैं । दूसरे शब्दों
में, संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त
होने वाले शब्द को सर्वनाम कहते है ।
जैसे- मैं, हम, तू, तुम, वह, यह, आप, कौन, कोई, जो इत्यादि ।
सर्वनाम के भेद-
1. पुरुषवाचक सर्वनाम
2. निश्चयवाचक सर्वनाम
3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम
4. संबंधवाचक सर्वनाम
5. प्रश्नवाचक सर्वनाम
6. निजवाचक सर्वनाम
सर्वनाम के भेदों का विवरण-
1. पुरुषवाचक सर्वनाम :- जिस सर्वनाम का प्रयोग वक्ता या लेखक स्वयं अपने
लिए अथवा श्रोता या पाठक के लिए अथवा किसी अन्य के लिए करता है वह पुरुषवाचक सर्वनाम
कहलाता है ।
पुरुषवाचक सर्वनाम तीन प्रकार
के होते हैं-
(i) उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम- मैं, हम, मुझे, हमारा
(ii) मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम- तू, तुम, तुझे, तुम्हारा
(iii) अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम- वह, वे, उसने, यह, ये, इसने
2. निश्चयवाचक सर्वनाम :- जो सर्वनाम किसी व्यक्ति वस्तु इत्यादि की ओर निश्चयपूर्वक
संकेत करें वे निश्चयवाचक सर्वनाम कहलाते हैं । इनमें- यह, वह, वे- सर्वनाम शब्द किसी विशेष व्यक्ति आदि का निश्चयपूर्वक
बोध करा रहे हैं, अतः ये निश्चयवाचक सर्वनाम है ।
3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम :-जिस
सर्वनाम शब्द के द्वारा किसी निश्चित व्यक्ति अथवा वस्तु का बोध न हो, वे अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहलाते
हैं । इनमें कोई और कुछ सर्वनाम शब्दों से
किसी विशेष व्यक्ति अथवा वस्तु का निश्चय नहीं हो रहा है । अतः ऐसे शब्द अनिश्चयवाचक
सर्वनाम कहलाते हैं ।
4. संबंधवाचक सर्वनाम :- परस्पर
एक-दूसरी बात का संबंध बतलाने के लिए जिन सर्वनामों का प्रयोग होता है उन्हें संबंधवाचक
सर्वनाम कहते हैं । इनमें जो, वह, जिसकी, उसकी, जैसा, वैसा -ये दो-दो शब्द परस्पर संबंध
का बोध करा रहे हैं । ऐसे शब्द संबंधवाचक सर्वनाम कहलाते हैं।
5. प्रश्नवाचक सर्वनाम :- जो
सर्वनाम संज्ञा शब्दों के स्थान पर तो आते ही है, किन्तु वाक्य को प्रश्नवाचक भी बनाते हैं वे प्रश्नवाचक
सर्वनाम कहलाते हैं । जैसे- क्या, कौन, कैसे इत्यादि ।
6. निजवाचक सर्वनाम :- जहाँ वक्ता या लेखक अपने लिए आप अथवा अपने आप
शब्द का प्रयोग हो वहाँ निजवाचक सर्वनाम होता है । जैसे- मैं तो आप ही आता था
। मैं अपने आप काम कर लूंगा ।
विशेषण एवं विशेषण के भेद
परिभाषा :- जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की
विशेषता बताए । जैसे- कौआ काला होता है । इस वाक्य में काला विशेषण है क्योंकि इससे कौआ यानी संज्ञा
के बारे में विशिष्ट (रंग) जानकारी मिलती है । विशेषण के कुछ और भी उदाहरणों से समझा जा सकता है-जैसे: बड़ा, काला, लंबा, दयालु, भारी, सुन्दर, कायर, टेढ़ा-मेढ़ा, एक, दो इत्यादि ।
विशेष्य :- विशेषण जिसकी विशेषता बतलाए ।
जैसे- बाज बड़ा पक्षी होता है ।
यहां बाज विशेष्य है क्योंकि ‘बड़ा’ (विशेषण) बाज की खासियत बया कर रहा है
।
विशेषण तथा विशेष्य का सम्बन्ध
संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता
बतानेवाले शब्द 'विशेषण' कहलाते हैं, परन्तु ये विशेषण जिस संज्ञा
या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं उसे 'विशेष्य' कहते हैं। संक्षेप में, जिसकी विशेषता बतलाई जाती है
उसे 'विशेष्य' कहते हैं।
जैसे - 'काली भैंस' या 'दुबली गाय ' में भैंस और गाय को विशेषता क्रमश
: - 'काली' व 'दुबली' बताई जा रही है इसलिए यहाँ 'भैंस' और 'गाय' विशेष्य है।
विशेषण के भेद :- विशेषण के चार भेद हैं :-
1.गुणवाचक विशेषण :-जिन शब्दों के माध्यम से संज्ञा
के गुण या दोष का पता चलता है उन्हें गुणवाचक विशेषण कहते हैं ।
गुणवाचक विशेषण के निम्नलिखित
रुप हैं-
|
(i) भाव- अच्छा, बुरा, कायर, वीर, डरपोक इत्यादि । |
|
(ii) समय- अगला, पिछला, दोपहर, संध्या, सवेरा इत्यादि । |
|
(iii) आकार- गोल, सुडौल, नुकीला, समान, पोला इत्यादि । |
|
(iv) रंग- लाल, हरा, पीला, सफेद, काला, चमकीला, फीका इत्यादि । |
|
(v) दशा- पतला, मोटा, सूखा, गाढ़ा, पिघला, भारी, गीला, गरीब, अमीर, रोगी, स्वस्थ, पालतू इत्यादि । |
|
(vi) काल- अगला, पिछला, नया, पुराना इत्यादि । |
|
(vii) स्थान- भीतरी, बाहरी, पंजाबी, जापानी, पुराना, ताजा, आगामी आदि। |
2. परिमाणवाचक विशेषण- जिससे संज्ञा की मात्रा का बोध
होता है । उसे परिणाम वाचक विशेषण कहते हैं ।
|
परिणामवाचक विशेषण भी दो प्रकार
के होते हैं- |
|
निश्चित परिणामवाचक- जिससे निश्चित मात्रा का पता
चले । जैसे- एक लीटर पानी, एक किलो प्याज । |
|
अनिश्चित परिणामवाचक- जिन शब्दों से संज्ञा की अनिश्चित
मात्रा का पता चले । जैसे- थोड़ा चावल, कुछ लोग, बहुत चिड़िया । |
3. संख्यावाचक विशेषण :- जिससे संख्या मालूम पड़े । जैसे- पांच किताबें, दो गाय, पांच गेंद, पांच सौ रुपए, कुछ रुपए इत्यादि।
|
संख्यावाचक विशेषण के भी तीन
भेद होते हैं- |
|
निश्चित संख्या वाचक- एक, दो, तीन इत्यादि । |
|
अनिश्चित संख्यावाचक- थोड़ा सा खाना, चंद रुपए इत्यादि । |
|
विभागबोधक- चार-चार लोग, दस-दस हाथी, प्रत्येक नागरिक इत्यादि । |
4. संकेतवाचक या सार्वनामिक विशेषण :- जो सर्वनाम, संज्ञा के लिए विशेषण का काम करते हैं ।
जैसे- वह लड़की सुंदर है । इस बाघ ने
हिरण को मारा । इत्यादि ।
तुलनात्मक विशेषण विशेषण :- शब्द किसी संज्ञा या सर्वनाम
की विशेषता बतलाते हैं । विशेषता बताई जाने वाली वस्तुओं के गुण-दोष कम-ज्यादा होते हैं । विशेषण के
इसी उतार-चढ़ाव को तुलना कहा जाती है ।
तुलना की दृष्टि से विशेषणों
की अवस्थाएं -
मूलावस्था- इसमें तुलना नहीं होती । जैसे- सुंदर, कुरूप, अच्छा, बुरा, बहादुर, कायर इत्यादि ।
उत्तरावस्था- इसमें दो की तुलना करके एक को
बेहतर या निम्नतर दिखाया जाता है । जैसे- रघु मधु से बहुत चालाक है ।
विशेषणों की रचना :-कुछ शब्द मूलरूप में ही विशेषण
होते हैं, लेकिन कुछ विशेषण की रचना संज्ञा, सर्वनाम एवं क्रिया से की जाती है-
(1) संज्ञा से विशेषण बनाना
|
प्रत्यय |
संज्ञा |
विशेषण |
संज्ञा |
विशेषण |
|
क |
अंश |
आंशिक |
धर्म |
धार्मिक |
|
अलंकार |
आलंकारिक |
नीति |
नैतिक |
|
|
अर्थ |
आर्थिक |
दिन |
दैनिक |
|
|
इतिहास |
ऐतिहासिक |
देव |
दैविक |
|
|
इत |
अंक |
अंकित |
कुसुम |
कुसुमित |
|
सुरभि |
सुरभित |
ध्वनि |
ध्वनित |
|
|
क्षुधा |
क्षुधित |
तरंग |
तरंगित |
|
|
इल |
जटा |
जटिल |
पंक |
पंकिल |
|
फेन |
फेनिल |
उर्मि |
उर्मिल |
|
|
इम |
स्वर्ण |
स्वर्णिम |
रक्त |
रक्तिम |
|
ई |
रोग |
रोगी |
भोग |
भोगी |
|
ईन,ईण |
कुल |
कुलीन |
ग्राम |
ग्रामीण |
|
ईय |
आत्मा |
आत्मीय |
जाति |
जातीय |
|
आलु |
श्रद्धा |
श्रद्धालु |
ईर्ष्या |
ईर्ष्यालु |
|
वी |
मनस |
मनस्वी |
तपस |
तपस्वी |
|
मय |
सुख |
सुखमय |
दुख |
दुखमय |
|
वान |
रूप |
रूपवान |
गुण |
गुणवान |
|
वती(स्त्री) |
गुण |
गुणवती |
पुत्र |
पुत्रवती |
|
मान |
बुद्धि |
बुद्धिमान |
श्री |
श्रीमान |
|
मती (स्त्री) |
श्री |
श्रीमती |
बुद्धि |
बुद्धिमती |
|
रत |
धर्म |
धर्मरत |
कर्म |
कर्मरत |
|
स्थ |
समीप |
समीपस्थ |
देह |
देहस्थ |
|
निष्ठ |
धर्म |
धर्मनिष्ठ |
कर्म |
कर्मनिष्ठ |
(2) सर्वनाम से विशेषण बनाना
|
सर्वनाम |
विशेषण |
सर्वनाम |
विशेषण |
|
वह |
वैसा |
यह |
ऐसा |
(3) क्रिया से विशेषण बनाना
|
क्रिया |
विशेषण |
क्रिया |
विशेषण |
|
पत |
पतित |
पूज |
पूजनीय |
|
भागना |
भागने वाला |
वंद |
वंदनीय |
निश्चयवाचक सर्वनाम और सार्वनामिक
विशेषण में अन्तर
निश्चयवाचक सर्वनाम और सार्वनामिक
विशेषण में सूक्ष्म-सा अन्तर होता है। निश्चयवाचक सर्वनाम किसी व्यक्ति, प्राणी वस्तु आदि की निश्चितता
का ज्ञान कराता है, जबकि सार्वनामिक विशेषण से व्यक्ति, प्राणी, वस्तु आदि की विशेषता का पता
चलता है। जैसे -
1 ( i ) यह मोहन का घर है ।
( ii ) वह शीला की पुस्तक है ।
2 ( i ) यह घर मोहन का है ।
( ii ) वह पुस्तक शीला की है ।
उपर्युक्त ( बिन्दु - 1 ) के
अन्तर्गत वाक्य ( i ) और ( ii ) में ' यह ' और ' वह ' क्रमश : ' मोहन के . घर ' और ' शीला की पुस्तक ' की निश्चितता का बोध कराते हैं । अत : ये निश्चयवाचक सर्वनाम हैं , जबकि ( बिन्दु - 2 ) के अन्तर्गत
वाक्य ( i ) और ( ii ) में ' यह घर ' और ' वह पुस्तक ' में ' यह घर की और ' वह ' पुस्तक की विशेषता बता रहे हैं , इसलिए सार्वनामिक विशेषण हैं ।
प्रविशेषण
परिभाषा - कुछ शब्द विशेषणों
की भी विशेषता प्रकट करते हैं, ऐसे शब्द ' प्रविशेषण' कहलाते हैं। उदाहरण -
1- आपने मुझ पर बहुत बड़ी कृपा
की ।
2- मोहन बड़ा ईमानदार व्यक्ति
है ।
3- कारखानों से अत्यन्त विषैला
पदार्थ निकलता है ।
4- मेरा भाई अत्यन्त कुशल और
अति सक्षम अधिकारी है ।
5- चन्द्रशेखर आजाद बड़े पराक्रमी
क्रान्तिकारी थे ।
संक्षेप में, प्रविशेषण न केवल संज्ञा की विशेषता
बताते हैं बल्कि क्रियाओं की भी विशेषता प्रकट करते हैं। प्रविशेषण प्रायः क्रिया या
क्रिया-विशेषण से पूर्व लगते हैं । ये विशेषण की निश्चितता अथवा अनिश्चितता भी बतलाते
हैं ।
हिन्दी में प्रविशेषण के रूप
में प्रयोग होनेवाले कुछ प्रचलित शब्द निम्नलिखित हैं-
बहुत, बहुत अधिक, बड़ा, अत्यधिक, अति, अत्यन्त, बिलकुल, खूब, थोड़ा, कम, पूर्णतः, तनिक, लगभग आदि।
प्रविशेषण का वाक्य-प्रयोग -
1- सीता अत्यन्त पवित्रहृदया
थीं ।
2- राम - सा महान् त्यागी नहीं
देखा ।
3- रावण बड़ा पराक्रमी था ।
4- सोहन बहुत अधिक घमण्डी है
।
5- खूब जी भरकर खाना खाओ ।
6- थोड़ा चुप रहना भी ठीक है
।
7- रजिया बहत चतुर है ।
8- मैं ठीक चार बजे भोर में उठता
हूँ ।
9- रमन का स्वास्थ्य कुछ खराब
है ।
10- आप तो बड़े जिद्दी हैं ।
क्रिया एवं क्रिया के भेद
परिभाषा - वैसे शब्द या पद जिससे
किसी कार्य के होने या किए जाने का बोध हो, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे-
(i) राधा नाच रही है ।
(ii) बच्चा दूध पी रहा है ।
(iii) मुकेश कॉलेज जा रहा है ।
इनमें ‘नाच रही है’, ‘पी रहा है’, ‘जा रहा है’ से कार्य के करने का पता चलता
है। इसलिए ये शब्द क्रिया कहलाएंगे।
धातु (Root)
यदि किसी एक क्रिया के विभिन्न
रुपों को देखा जाए, जैसे- करेगा, कर रहा है, करता है, कर लेगा, कर चुका होगा, करना चाहिए, करिए, करो, करवाइए इत्यादि तो इस सबमें कर ऐसा अंश है जो सभी क्रिया रूपों में समान रूप
से आ रहा है । इसे ही धातु कहते हैं ।
धातु के भी दो भेद होते हैं-
(i) सामान्य धातु- मूल में ना प्रत्यय
लगाकर बनने वाला रूप सरल धातु या सामान्य धातु कहलाता है । जैसे- सोना, रोना, पढ़ना, बैठना इत्यादि ।
(ii) व्युत्पन्न धातु- सामान्य धातुओं
में प्रत्यय लगाकर या अन्य किसी प्रकार से परिवर्तन कर जो धातुएं बनाई जाती हैं उन्हें
व्युत्पन्न धातु कहते हैं ।
जैसे-
सामान्य धातु व्युत्पन्न
धातु
पढ़ना पढ़ाना, पढ़वाना
काट काटना, कटवाना
देना दिलाना, दिलवाना
करना कराना, करवाना
सोना सुलाना, सुलवाना
(iii) नामधातु- संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण में प्रत्यय
लगाकर जो धातुएं बनती हैं, उन्हें नामधातु कहा जाता है । जैसे-
संज्ञा से-
बात बतियाना
हाथ हथियाना
फ़िल्म फ़िल्माना
सर्वनाम से-
आप अपनाना
विशेषण से-
चिकना चिकनाना
लँगड़ा लँगड़ाना
साठ सठियाना
(iv) सम्मिश्र धातु- संज्ञा, विशेषण या क्रिया-विशेषण के साथ
जब करना, होना, देना जैसे क्रियापद जुड़ जाते हैं तो उसे सम्मिश्र धातु कहा जाता है ।
जैसे- संज्ञा से- स्मरण स्मरण करना
विशेषण से- काला काला करना
क्रिया विशेषण से-
भीतर भीतर जाना
बाहर बाहर जाना
कर्म के आधार पर क्रिया के भेद
: (1) अकर्मक क्रिया (2) सकर्मक क्रिया
1. अकर्मक क्रिया
जिन क्रियाओं का फल सीधा कर्ता
पर ही पड़े वे अकर्मक क्रिया कहलाती हैं । ऐसी अकर्मक क्रियाओं को कर्म की आवश्यकता
नहीं होती ।
अकर्मक क्रियाओं के उदाहरण-
(i) गौरव रोता है ।
(ii) साँप रेंगता है ।
(iii) रेलगाड़ी चलती है ।
कुछ अकर्मक क्रियाएँ-
लजाना डोलना
होना चमकना
बढ़ना ठहरना
सोना कूदना
खेलना उछलना
अकड़ना बरसना
डरना जागना
बैठना फाँदना
हँसना घटना
उगना मरना
जीना रोना
दौड़ना दौड़ा
2. सकर्मक क्रिया
जिन क्रियाओं का फल (कर्ता को
छोड़कर) कर्म पर पड़ता है वे सकर्मक क्रिया कहलाती हैं।
इन क्रियाओं में कर्म का होना
आवश्यक हैं ।
जैसे- (i) भँवरा फूलों का रस पीता है ।
(ii) रमेश मिठाई खाता है ।
(iii) सविता फल लाती है ।
प्रयोग की दृष्टि से क्रिया के भेद
1. सामान्य क्रिया- जहाँ केवल एक क्रिया का प्रयोग
होता है वह सामान्य क्रिया कहलाती है ।
जैसे- आप आए । वह नहाया
।
2. संयुक्त क्रिया- जहाँ दो अथवा अधिक क्रियाओं का
साथ-साथ प्रयोग हो वे संयुक्त क्रिया कहलाती हैं। जैसे-
सविता महाभारत पढ़ने लगी ।
वह खा चुका ।
3. नामधातु क्रिया- संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण शब्दों से
बने क्रियापद नामधातु क्रिया कहलाते हैं ।
जैसे- हथियाना, शरमाना, अपनाना, लजाना, चिकनाना, झुठलाना इत्यादि ।
4. प्रेरणार्थक क्रिया- जिस क्रिया
से पता चले कि कर्ता स्वयं कार्य को न करके किसी अन्य को उस कार्य को करने की प्रेरणा
देता है वह प्रेरणार्थक क्रिया कहलाती है।
ऐसी क्रियाओं के दो कर्ता होते
हैं-
(1) प्रेरक कर्ता- प्रेरणा प्रदान करने वाला।
(2) प्रेरित कर्ता- प्रेरणा लेने वाला।
जैसे- मोहन राधा से पत्र लिखवाता
है ।
इसमें वास्तव में पत्र तो राधा
लिखती है, लेकिन उसको लिखने की प्रेरणा देता है मोहन । अतः ‘लिखवाना’ क्रिया प्रेरणार्थक क्रिया है
। इस वाक्य में मोहन प्रेरक कर्ता है और राधा प्रेरित कर्ता।
5. पूर्वकालिक क्रिया- किसी क्रिया
से पहले यदि कोई दूसरी क्रिया प्रयुक्त हो तो वह पूर्वकालिक क्रिया कहलाती है ।
जैसे- मैं अभी खाकर उठा हूँ ।
इसमें ‘उठा हूँ’ क्रिया से पूर्व ‘खाकर’ क्रिया का प्रयोग हुआ है । अतः
‘खाकर’ पूर्वकालिक क्रिया है ।
पूर्वकालिक क्रिया या तो क्रिया
के सामान्य रूप में प्रयुक्त होती है अथवा धातु के अंत में‘कर’ या‘करके’ लगा देने से पूर्वकालिक क्रिया
बन जाती है ।
जैसे-
(1) बच्चा दूध पीते ही सो गया ।
(2) लड़कियाँ पुस्तकें पढ़कर जाएँगी ।
अपूर्ण क्रिया - कई बार वाक्य में क्रिया के होते हुए
भी उसका अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाता । ऐसी क्रियाएँ अपूर्ण क्रिया कहलाती हैं ।
जैसे- भगत सिंह थे । वह है ।
ये क्रियाएँ अपूर्ण क्रियाएँ
हैं । अब इन्हीं वाक्यों को फिर से पढ़िए-
भगत सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे
। वह बुद्धिमान है ।
इन वाक्यों में क्रमशः ‘स्वतंत्रता सेनानी’ और ‘बुद्धिमान’ शब्दों के प्रयोग से स्पष्टता
आ गई। ये सभी शब्द ‘पूरक’ हैं। अपूर्ण क्रिया के अर्थ को
पूरा करने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है उन्हें पूरक कहते हैं ।
वाच्य
वाच्य- वाच्य का अर्थ है ‘बोलने का विषय।’
क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात
हो कि उसके द्वारा किए गए विधान का विषय कर्ता है, कर्म है या भाव है, उसे वाच्य कहते हैं।
दूसरे शब्दों में क्रिया के जिस
रूप से यह ज्ञात हो कि उसके प्रयोग का आधार कर्ता, कर्म या भाव है, उसे वाच्य कहते हैं। वाच्य के
भेद-हिंदी में वाच्य के तीन भेद माने जाते हैं –
1. कर्तवाच्य- जिस वाक्य में कर्ता की प्रमुखता होती
है अर्थात क्रिया का प्रयोग कर्ता के लिंग, वचन, कारक के अनुसार होता है और इसका
सीधा संबंध कर्ता से होता है तब कर्तृवाच्य होता है।
कर्तृवाच्य-कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य।
कर्तृवाच्य में अकर्मक और सकर्मक
दोनों प्रकार की क्रिया का प्रयोग किया जाता है; जैसे –
कर्ता के अपनी सामर्थ्य या क्षमता
दर्शाने के लिए सकारात्मक वाक्यों में क्रिया के साथ सक के विभिन्न रूपों का प्रयोग
किया जाता है; जैसे –
• मैं फ्रेंच पढ़-लिख सकता हूँ।
• यह कलाकार फ़िल्मी गीतों के अलावा लोकगीत भी गा सकता है।
• ऐसा सुंदर स्वेटर सुमन ही बन सकती है।
• यही मज़दूर इस भारी पत्थर को हटा सकता है।
कर्तृवाच्य के वाक्यों को कर्मवाच्य
और भाववाच्य में बदला जा सकता है। कर्तृवाच्य में कर्ता की असमर्थता दर्शाने के लिए
क्रिया एवं नहीं के साथ सक के विभिन्न रूपों का भी प्रयोग किया जा सकता है; जैसे –
• मैं चीनी भाषा नहीं लिख सकता हूँ।
• यह मोटा आदमी तेज़ नहीं दौड़ सकता है।
• बच्चे आज खेलने बाहर नहीं जा सकते हैं।
• मोहन यह सवाल हल नहीं कर सकता है।
2. कर्मवाच्य-जिस वाक्य में कर्म
की प्रधानता होती है तथा क्रिया का प्रयोग कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार होता
है और कर्ता की स्थिति में स्वयं कर्म होता है, वहाँ कर्मवाच्य होता है।
जैसे –
उपर्युक्त वाक्यों में क्रिया
का प्रयोग कर्ता के अनुसार न होकर इनके कर्म के अनुसार हुआ है, अतः ये कर्मवाच्य हैं।
अन्य उदाहरण –
मोहन के द्वारा लेख लिखा जाता
है।
हलवाई द्वारा मिठाइयाँ बनाई जाती
हैं।
चित्रकार द्वारा चित्र बनाया
जाता है।
रूपाली द्वारा कढ़ाई की जाती
है।
कर्मवाच्य-कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य
• कर्मवाच्य में कर्म उपस्थित रहता है और क्रिया सकर्मक होती है।
कर्मवाच्य के वाक्यों में प्रायः
क्रिया ‘जा’ का रूप लगाया जाता है; जैसे –
• इस वाच्य में कर्ता के बाद से या के द्वारा का प्रयोग किया जाता है; जैसे –
• तुलसीदास द्वारा रामचरितमानस की रचना की गई। (कर्ता + द्वारा)
• नौकर से गिलास टूट गया। (कर्ता + से)
कभी-कभी कर्ता का लोप रहता है; जैसे –
पेड़ लगा दिए गए हैं। पत्र भेज
दिया गया है।
कर्मवाच्य में असमर्थता सूचक वाक्यों में ‘के द्वारा’ के स्थान पर ‘से’ का प्रयोग किया जाता है। ऐसा
केवल नकारात्मक वाक्यों में किया जाता है; जैसे –
मुझसे अंग्रेज़ी नहीं बोली जाती।
मज़दूर से यह भारी पत्थर नहीं उठाया गया।
कर्मवाच्य का प्रयोग निम्नलिखित स्थानों पर भी किया जाता है
–
(i) कार्यालयी या कानूनी प्रयोग में
–
हेलमेट न पहनने वालों को दंडित
किया जाएगा।
चालान घर भिजवा दिया जाएगा।
(ii) अशक्तता दर्शाने के लिए; जैसे –
अब दवा भी नहीं पी जाती।
अब तो रोटी भी नहीं चबाई जाती।
(iii) जब सरकार या सभा स्वयं कर्ता
हो; जैसे –
प्रत्येक घायल को पचास हजार रुपये
दिए जाएँगे।
दालों के निर्यात का फ़ैसला कर
लिया गया है।
(iv) जब कर्ता ज्ञात न हो; जैसे –
भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया जा
रहा है।
पत्र भेज दिया गया है।
(v) अधिकार या घमंड का भाव दर्शाने
के लिए; जैसे
ऐसा खाना हमसे नहीं खाया जाता।
नौकर को बुलाया जाए।
3. भाववाच्य–इस वाच्य में कर्ता अथवा कर्म
की नहीं बल्कि भाव अर्थात् क्रिया के अर्थ की प्रधानता होती है; जैसे–
मरीज से उठा नहीं जाता।
पहलवान से दौडा नहीं जाता।
भाववाच्य – कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य
• इस वाच्य में प्रायः नकारात्मक वाक्य होते हैं।
• भाववाच्य में अकर्मक क्रिया का प्रयोग होता है।
भाववाच्य में प्रयुक्त क्रिया
सदा पुल्लिंग अकर्मक और एकवचन होती है। जैसे –
• चलो, अब सोया जाय।
• ऐसी धूप में कैसे चला जाएगा।
• विधवा से रोया भी नहीं जाता।
• इस मोटे व्यक्ति से उठा नहीं जाता।
• चलो घूमने चला जाए।
• भाववाच्य को केवल कर्तृवाच्य में बदला जा सकता है।
वाच्य-परिवर्तन
वाच्य परिवर्तन के अंतर्गत तीनों
प्रकार के वाच्यों को परस्पर परिवर्तित किया जाता है
1. कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य बनाना-कर्तृवाच्य
से कर्मवाच्य बनाने के लिए –
(i) यदि कर्ता के बाद ‘ने’ परसर्ग लगा है तो उसे हटाकर द्वारा, से, के द्वारा लगाया जाता है।
(ii) क्रिया का प्रयोग कर्म के लिंग
पुरुष और वचन के अनुसार करके ‘जा’ धातु को उचित रूप जोड़ देते हैं; जैसे –
2. कर्तृवाच्य से भाववाच्य में
बदलना-भाववाच्य में मुख्य रूप से निषेधात्मक वाक्य आते हैं। भाववाच्य बनाते समय ने
परसर्ग हटाकर से जोड़ दिया जाता है तथा क्रिया में आवश्यक बदलाव कर दिया जाता है; जैसे –
अभ्यास प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नलिखित वाक्यों
के वाच्य का नाम लिखिए
1. वह खाना खाकर चला गया।
2. मोहन से चला नहीं जाता।
3. आज निश्चित होकर सोया जाएगा।
4. ड्राईवर बस चलाता जा रहा था।
5. उससे पत्र नहीं पढ़ा जाता।
6. रुक्मिणी से यह सामान नहीं उठाया जाता।
7. छात्राएँ रात-रात भर पढ़ाई करती रही।
8. वह रामलीला देख रहा है।
9. तन्वी रात भर सो न सकी।
10. अक्षर से एक भी गेंद नहीं फेंकी गई।
उत्तरः
1. कर्तृवाच्य
2. भाववाच्य
3. भाववाच्य
4. कर्तृवाच्य
5. कर्मवाच्य
6. कर्मवाच्य
7. कर्तृवाच्य
8. कर्तृवाच्य
9. भाववाच्य
10. कर्मवाच्य
प्रश्न 2. निम्नलिखित वाक्यों
को कर्तृवाच्य में बदलिए
1. दीप्ति द्वारा नहीं लिखा जाता।
2. शोभना से पढ़ा नहीं जाता।
3. श्रद्धालु काशीवासियों द्वारा इस सभा का आयोजन किया जाता है।
4. समर्थकों द्वारा पुष्प वर्षा की गई।
5. आपके द्वारा उनके विषय में क्या सोचा जाता है।
6. उनके द्वारा कैप्टन की देशभक्ति का सम्मान किया गया।
7. चलिए, अब सोया जाए।
8. परीक्षा के बारे में अध्यापक द्वारा क्या कहा गया?
9. चलो, आज मिलकर कहीं घूमा जाए।
10. महादेवी वर्मा द्वारा ‘यामा’ लिखी गई।
11. माँ से रात भर बैठा नहीं जाएगा।
12. प्रेमचंद द्वारा गोदान लिखा गया।
13. इन मच्छरों में रातभर कैसे सोया जाएगा।
14. मुझसे सहा नहीं जाता।
15. कथावाचक द्वारा गीता का रहस्य समझाया गया।
उत्तरः
1. दीप्ति नहीं लिखती है।
2. शोभना नहीं पढ़ती है।
3. श्रद्धालु काशीवासी इस सभा का आयोजन करते हैं।
4. समर्थकों ने पुष्पवर्षा की।
5. आप उनके विषय में क्या सोचते हैं।
6. उन्होंने कैप्टन की देशभक्ति का सम्मान किया।
7. चलो,अब सोते हैं।
8. परीक्षा के बारे में अध्यापक ने क्या कहा?
9. चलो आज मिलकर कहीं घूमते हैं।
10. महादेवी ने ‘यामा’ लिखी।
11. माँ रात भर बैठ नहीं सकेगी।
12. प्रेमचंद ने गोदान लिखा।
13. इन मच्छरों में रात भर कैसे सोएँगे।
14. मैं सह नहीं सकता।
15. कथावाचक ने गीता का रहस्य समझाया।
प्रश्न 3.निम्नलिखित वाक्यों
को कर्मवाच्य में बदलिए
1. उन्होंने दोनों भाइयों को पढ़ाया।
2. रामपाल ने बड़े दुखी मन से अपना अपराध स्वीकार किया।
3. उसने भगत को दुनियादारी से निवृत्त कर दिया।
4. आओ, कुछ बातें करें।
5. हमने उसको अच्छे संस्कार देने का प्रयास किया।
6. मंत्री जी ने राहत सामग्री बँटवाई।
7. अनेक श्रोताओं ने कविता की प्रशंसा की।
8. बहन ने भाई को प्रेमपूर्वक राखी बाँधी।
9. सभी दर्शकों ने नाटक की प्रशंसा की।
10. उसने भोजन कर लिया।
11. सरकार ने शिक्षा का बजट दूना कर दिया है।
12. मंत्री जी ने मोहल्ला क्लीनिक का उद्घाटन किया।
13. दाल के दाम ने लोगों को रुला दिया है।
14. उसने नया व्यवसाय शुरू कर दिया है।
15. वह कालीन बुनता है।
उत्तरः
1. उनके द्वारा दोनों भाईयों को पढ़ाया गया।
2. रामपाल द्वारा अत्यंत दुखी मन से अपना अपराध स्वीकार किया गया।
3. उसके द्वारा भगत को दुनियादारी से मुक्त कर दिया गया।
4. आइए, कुछ बातें की जाएँ।
5. हमारे द्वारा उसको अच्छे संस्कार देने का प्रयास किया गया।
6. मंत्री जी द्वारा राहत सामग्री बँटवाई गई।
7. अनेक श्रोताओं द्वारा कविता की प्रशंसा की गई।
8. बहन द्वारा भाई को प्रेमपूर्वक राखी बाँधी गई।
9. सभी दर्शकों द्वारा नाटक की प्रशंसा की गई।
10. उसके द्वारा भोजन कर लिया गया।
11. सरकार द्वारा शिक्षा का बजट दूना बढ़ा दिया गया है।
12. मंत्री जी द्वारा मोहल्ला क्लीनिक का उद्घाटन किया गया।
13. दाल के दाम द्वारा लोगों को रुला दिया गया है।
14. उसके द्वारा नया व्यवसाय शुरू कर दिया गया है।
15. उसके द्वारा कालीन बुना जाता है।
प्रश्न 4. निम्नलिखित वाक्यों
को भाववच्य में बदलिए
1. घायल होने के कारण वह उड़ नहीं पाया।
2. मोहिनी क्षणभर के लिए भी शांत नहीं बैठती है।
3. चलो, अब चलते हैं।
4. माँ रो भी नहीं सकती।
5. हम इतनी गरमी में नहीं रह सकते।
6. वह खड़ा नहीं हो सकता।
7. वह अब भी बैठ नहीं सकता।
8. पेड़ कट गए हैं।
9. मैं पढ़ नहीं सकता।
उत्तरः
1. घायल होने के कारण उससे उड़ा नहीं गया।
2. मोहिनी से क्षण भर भी शांत नहीं बैठा जाता है।
3. चलिए अब चला जाए।
4. माँ से रोया भी नहीं जाता।
5. हमसे इतनी गरमी में भी नहीं रहा जाता।
6. उससे खड़ा नहीं हुआ जा सकता।
7. उससे अब भी बैठा नहीं जाता।
8. पेड़ों को काट दिया गया है।
9. मुझसे पढ़ा नहीं जा सकता।
प्रश्न 5. निम्नलिखित वाक्यों
में वाच्य परिवर्तन कीजिए –
1. यह मकान दादाजी ने बनवाया है। (कर्म वाच्य)
2. वह दौड़ नहीं सकता। (भाव वाच्य)
3. अध्यापक द्वारा विद्यार्थी को पढ़ाया गया। (कर्तृ वाच्य)
4. राष्ट्रपति ने इस भवन का उद्घाटन किया। (कर्म वाच्य)
उत्तरः
1. यह मकान दादा जी के द्वारा बनवाया गया है।
2. उससे दौड़ा नहीं जाता।
3. अध्यापक ने विद्यार्थी को पढ़ाया।
4. राष्ट्रपति द्वारा इस भवन का उद्घाटन किया गया।
अव्यय एवं अव्यय के भेद
परिभाषा- अव्यय का शाब्दिक अर्थ
है जिस शब्द का कुछ भी व्यय न हो ।
दूसरे रूप में, अव्यय वे शब्द हैं जिनके रूप
में लिंग-वचन-पुरुष-काल इत्यादि व्याकरणिक कोटियों के प्रभाव से कोई परिवर्तन नहीं
होता ।
जैसे- पर, लेकिन, ताकि, आज, कल, तेज, धीरे, अरे, ओह इत्यादि ।
अव्यय के पांच भेद हैं-
1. क्रिया-विशेषण
2. संबंधबोधक
3. समुच्चय बोधक
4. विस्मयादिबोधक
5. निपात
क्रिया-विशेषण
वे अव्यय शब्द जो क्रिया की विशेषता
बताते हैं, क्रिया-विशेषण कहलाते हैं ।
|
उदाहरण |
क्रियाविशेषण |
|
बच्चे धीरे-धीरे चल रहे थे
। |
धीरे-धीरे |
|
वे लोग रात को पहुंचे । |
रात को |
|
सुधा प्रतिदिन पढ़ती है । |
प्रतिदिन |
|
वह यहां आता है । |
यहां |
|
अर्थानुसार क्रिया-विशेषण के
चार भेद हैं- |
|
1. कालवाचक |
|
2. स्थानवाचक |
|
3. परिमाणवाचक |
|
4. रीतिवाचक |
1. कालवाचक क्रिया-विशेषण- जिस क्रिया-विशेषण
शब्द से कार्य के होने का समय ज्ञात हो ।
इसमें ज्यादातर ये शब्द प्रयोग
में आते हैं- यदा, कदा, जब, तब, हमेशा, तभी, तत्काल, निरंतर, शीघ्र, पूर्व, बाद, पीछे, घड़ी-घड़ी, अब, तत्पश्चात्, तदनंतर, कल, कई बार, अभी, फिर, कभी आदि ।
2. स्थानवाचक क्रिया-विशेषण-
जिस क्रिया-विशेषण शब्द द्वारा क्रिया के होने के स्थान का बोध हो ।
इसमें ज्यादातर ये शब्द इस्तेमाल
किए जाते हैं- भीतर, बाहर, अंदर, यहाँ, वहाँ, किधर, उधर, इधर, कहाँ, जहाँ, पास, दूर, अन्यत्र, इस ओर, उस ओर, दाएँ, बाएँ, ऊपर, नीचे आदि ।
3.परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण-जो
शब्द क्रिया का परिमाण बतलाते हैं वे परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण कहलाते हैं।
जैसे- बहुधा, थोड़ा-थोड़ा, अत्यंत, अधिक, अल्प, बहुत, कुछ, पर्याप्त, प्रभूत, कम, न्यून, बूँद-बूँद, स्वल्प, केवल, प्रायः, अनुमानतः, सर्वथा आदि ।
4. रीतिवाचक क्रिया-विशेषण- जिन
शब्दों के द्वारा क्रिया के संपन्न होने की रीति का बोध हो ।
जैसे- अचानक, सहसा, एकाएक, झटपट, आप ही, ध्यानपूर्वक, धड़ाधड़, यथा, तथा, ठीक, सचमुच, अवश्य, वास्तव में, निस्संदेह, बेशक, शायद, संभव हैं, कदाचित्, बहुत करके, हाँ, ठीक, सच, जी, जरूर, अतएव, किसलिए, क्योंकि, नहीं, न, मत, कभी नहीं, कदापि नहीं आदि ।
संबंधबोधक अव्यय - वे शब्द जो
संज्ञा या सर्वनाम के बाद प्रयुक्त होकर वाक्य अन्य संज्ञा सर्वनाम शब्दों के साथ संबंध
का बोध कराते हैं ।
|
उदाहरण |
संबंधबोधक अव्यय |
|
मैंने घर के सामने कुछ पेड़
लगाए हैं । |
सामने |
|
उसका साथ छोड़ दीजिए । |
साथ |
|
छत पर कबूतर बैठा है । |
पर |
क्रिया-विशेषण और संबंधबोधक अव्यय
में अंतर
जब इनका प्रयोग संज्ञा या सर्वनाम
के साथ होता है तब ये संबंधबोधक अव्यय होते हैं
और जब ये क्रिया की विशेषता प्रकट
करते हैं तब क्रिया-विशेषण होते हैं ।
जैसे-
(i) बाहर जाओ । (क्रिया विशेषण)
(ii) घर से बाहर जाओ । (संबंधबोधक
अव्यय)
समुच्चयबोधक अव्यय
दो शब्दों, वाक्यांशों या वाक्यों को मिलाने
वाले अव्यय समुच्चयबोधक अव्यय कहलाते हैं। इन्हें योजक भी कहते हैं
|
उदाहरण |
समुच्चबोधक अव्यय |
|
मता जी और पिताजी |
और |
|
मैं पटना आना चाहता था लेकिन
आ न सका । |
लेकिन |
|
तुम जाओगे या वह आएगा । |
या |
और, तथा, एवं, व, लेकिन, मगर, किंतु, परंतु, इसलिए, इस कारण, अत:, क्योंकि, ताकि, या, अथवा, चाहे
इत्यादि शब्द को समुच्चय बोधक
में शामिल किया गया है ।
|
समुच्चयबोधक के दो भेद हैं- |
|
1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक |
|
2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक |
1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक
वे योजक शब्द जो समान अधिकार
वाले अंशों को जोड़ने का कार्य करते हैं ।
जैसे- किंतु, और, या, अथवा इत्यादि ।
2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक - वे योजक
जिनमें एक अंश मुख्य होता है और एक गौण या जो एक मुख्य वाक्य में एक या एक से अधिक
उपवाक्यों को जोड़ने का कार्य करते हैं, व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहलाते हैं ।
जैसे- चूंकि, इसलिए, यद्यपि, तथापि, कि, मानो, क्योंकि, यहां तक कि, जिससे कि, ताकि आदि ।
विस्मयादिबोधक अव्यय - जिन शब्दों में हर्ष, शोक, विस्मय, ग्लानि, घृणा, लज्जा आदि भाव प्रकट होते हैं
वे विस्मयादिबोधक अव्यय कहलाते हैं । इन्हें ‘द्योतक’ भी कहते हैं ।
जैसे- अहा ! क्या मौसम है । अरे ! आप
आ गए ?
विस्मयादिबोधक अव्यय में (!) चिह्न लगता है ।
भाव के आधार पर इसके सात भेद
हैं-
|
विस्मायादिबोधक अव्यय के भेद |
उदाहरण |
||
|
(i) हर्षबोधक- |
अहा ! धन्य ! वाह-वाह ! ओह ! वाह ! शाबाश ! |
||
|
(ii) शोकबोधक- |
आह ! हाय ! हाय-हाय ! हा, त्राहि-त्राहि ! बाप रे ! |
||
|
(iii) विस्मयादिबोधक- |
हैं ! ऐं ! ओहो ! अरे वाह ! |
||
|
(iv) तिरस्कारबोधक- |
छिः ! हट ! धिक् धत् ! छिः छिः ! चुप ! |
||
|
(v) स्वीकृतिबोधक- |
हाँ-हाँ ! अच्छा ! ठीक ! जी हाँ ! बहुत अच्छा ! |
||
|
(vi) संबोधनबोधक- |
रे ! री ! अरे ! अरी ! ओ ! अजी ! हैलो ! |
||
|
(vii) आशीर्वादबोधक- |
दीर्घायु हो ! जीते रहो ! |
|
|
निपात अव्यय - कुछ अव्यय शब्द वाक्य में किसी शब्द या पद के बाद
लगकर उसके अर्थ में विशेष प्रकार का बल ला देते हैं, इन्हें निपात कहा जाता है ।
विशेष प्रकार का बल या अवधारणा
देने की वजह से इसे अवधारक शब्द भी कहा जाता है ।
|
निपात या अवधारक शब्द |
बनने वाले वाक्य |
|
ही |
प्रशांत को ही करना होगा यह काम । |
|
भी |
सुहाना भी जाएगी । |
|
तो |
तुम तो सनम डुबोगे ही, सबको डुबाओगे । |
|
तक |
वह तुमसे बोली तक नहीं । |
|
मात्र |
पढ़ाई मात्र से ही सब कुछ नहीं मिल जाता । |
|
भर |
तुम उसे जानता भर हो । |
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