12.3 संवाद लेखन Samvaad Lekhan

 

संवाद लेखन

संवाद की परिभाषा :- दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच हुए वार्तालाप या सम्भाषण को संवाद कहते हैं।
दूसरे शब्दों में - दो व्यक्तियों की बातचीत को 'वार्तालाप' अथवा 'संभाषण' अथवा 'संवाद' कहते हैं।

संवाद का सामान्य अर्थ बातचीत है। इसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति भाग लेते है। अपने विचारों और भावों को व्यक्त करने के लिए संवाद की सहायता ली जाती है। जो संवाद जितना सजीव, सामाजिक और रोचक होगा, वह उतना ही अधिक आकर्षक होगा। उसके प्रति लोगों का खिंचाव होगा। अच्छी बातें कौन सुनना नहीं चाहता ? इसमें कोई भी व्यक्ति अपने विचार सरल ढंग से व्यक्त करने का अभ्यास कर सकता है।

वार्तालाप में व्यक्ति के स्वभाव के अनुसार उसकी अच्छी-बुरी सभी बातों को स्थान दिया जाता है। इससे छात्रों में तर्क करने की शक्ति उत्पत्र होती है। नाटकों में वार्तालाप का उपयोग सबसे अधिक होता है। इसमें रोचकता, प्रवाह और स्वाभाविकता होनी चाहिए। व्यक्ति, वातावरण और स्थान के अनुसार इसकी भाषा ऐसी होनी चाहिए जो हर तरह से सरल हो। इतना ही नहीं, वार्तालाप संक्षिप्त और मुहावरेदार भी होना चाहिए।

संवाद के अनेक नाम हैं : वार्तालाप, आलाप, संलाप, कथोपकथन, गुफ्तगू, सम्भाषण इत्यादि। यह कहानी, उपन्यास, एकांकी, नाटकादि की जान है। इसके माध्यम से पात्रों की सोच, चिन्तन-शैली, तार्किक क्षमता और उसके चरित्र का पता चलता है। नाटकों के संवादों से कथावस्तु का निर्माण होता है।

संवाद के वाक्यों में स्वाभाविकता होनी चाहिए, बनावटीपन नहीं। लम्बे-लम्बे कठिन और उलझे हुए संवाद प्रायः बनावटी हुआ करते हैं। अच्छा संवाद-लेखक ही नाटक, रेडियो नाटक, एकांकी तथा कथा-कहानी लिखने में कुशलता हासिल करता है।

भाषा, बोलनेवाले के अनुसार थोड़ी-थोड़ी भिन्न होती है। उदाहरण के रूप में एक अध्यापक की भाषा छात्र की अपेक्षा ज्यादा संतुलित और सारगर्भित होगी। एक पुलिस अधिकारी की भाषा और अपराधी की भाषा में काफी अन्तर होगा। इसी तरह दो मित्रों या महिलाओं की भाषा कुछ भिन्न प्रकार की होगी। दो व्यक्ति, जो एक-दूसरे के शत्रु हैं- उनकी भाषा अलग होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि संवाद-लेखन में पात्रों के लिंग, उम्र, कार्य, स्थिति का ध्यान रखना चाहिए।

संवाद-लेखन में इन बातों पर भी ध्यान देना चाहिए कि वाक्य-रचना सजीव हो; शैली सरल और भाषा बोधगम्य हो। उसमें कठिन शब्दों का प्रयोग कम-से-कम हो। संवाद के वाक्य बड़े न हों; संक्षिप्त और प्रभावशाली हों। मुहावरेदार भाषा काफी रोचक होती है। अतएव, यथास्थान उनका प्रयोग हो।

अच्छी संवाद-रचना के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

(1) संवाद छोटे, सहज तथा स्वाभाविक हों।
(2)
संवादों में रोचकता एवं सरसता हो।
(3)
इनकी भाषा सरल, स्वाभाविक और बोलचाल के निकट हो। उसमें क्लिष्ट तथा अप्रचलित शब्दों का प्रयोग न हो।
(4)
संवाद पात्रों की सामाजिक स्थिति के अनुकूल हों। अनपढ़ या ग्रामीण पात्रों और शिक्षित पात्रों के संवादों में अंतर रहना चाहिए।
(5)
संवाद जिस विषय या स्थिति के सम्बन्ध में हों, उसे क्रमशः स्पष्ट करने वाले हों।
(6)
प्रसंग के अनुसार संवादों में व्यंग्य-विनोद का समावेश होना चाहिए।
(7)
यथास्थान मुहावरों तथा लोकोक्तियों के प्रयोग से संवादों में सजीवता आ जाती है।

अच्छे संवाद-लेखन की विशेषताएँ

(1) संवाद में प्रवाह, क्रम और तर्कसम्मत विचार होना चाहिए।
(2)
संवाद देश, काल, व्यक्ति और विषय के अनुसार लिखा होना चाहिए।
(3)
संवाद सरल भाषा में लिखा होना चाहिए।
(4)
संवाद में जीवन की जितनी अधिक स्वाभाविकता होगी, वह उतना ही अधिक सजीव, रोचक और मनोरंजक होगा।
(5)
संवाद का आरम्भ और अन्त रोचक हो।
ऊपर दी गयी विशेषताओं को ध्यान में रखकर छात्रों को संवाद लिखने का अभ्यास करना चाहिए। इससे उनमें जीवनगत यथार्थ को समझने और सर्जनात्मक शक्ति को जागरित करने का अवसर मिलता है। उनमें बोलचाल की भाषा लिखने की प्रवृति जगती है।

कुछ उदाहरण इस प्रकार है-

हामिद और दुकानदार का संवाद

हामिद- यह चिमटा कितने का है ?

दुकानदार- यह तुम्हारे काम का नहीं है जी।

हामिद- बिकाऊ है कि नहीं ?

दुकानदार- बिकाऊ नहीं है और यहाँ क्यों लाद लाये है ?

हामिद- तो बताते क्यों नहीं, कै पैसे का है ?

दुकानदार-छे पैसे लगेंगे।

हामिद- ठीक बताओ।

दुकानदार- ठीक-ठीक पाँच पैसे लगेंगे, लेना हो तो लो, नहीं तो चलते बनो।

हामिद- तीन पैसे लोगे ?

पड़ोसी और अँगनू काका का संवाद

पड़ोसी- यह पिल्ला कब पाला, अँगनू काका ?

अँगनू काका- अरे भैया, मैंने काहे को पाला। यहाँ अपने ही पेट का ठिकाना नहीं। रात में न जाने कहाँ से आ गया!

पड़ोसी- तुम इसे पाल लो, काका।

अँगनू काका- भैया की बातें !इसे पालकर करेंगे क्या ?

पड़ोसी- तुम्हारी कोठरी ताका करेगा।

अँगनू काका- कोठरी में कौन खजाना गड़ा है, जो ताकेगा।

रोगी और वैद्य

रोगी- (औषधालय में प्रवेश करते हुए) वैद्यजी, नमस्कार!

वैद्य- नमस्कार! आइए, पधारिए! कहिए, क्या हाल है ?

रोगी- पहले से बहुत अच्छा हूँ। बुखार उतर गया है, केवल खाँसी रह गयी है।

वैद्य- घबराइए नहीं। खाँसी भी दूर हो जायेगी। आज दूसरी दवा देता हूँ। आप जल्द अच्छे हो जायेंगे।

रोगी- आप ठीक कहते हैं। शरीर दुबला हो गया है। चला भी नहीं जाता और बिछावन पर पड़े-पड़े तंग आ गया हूँ।

वैद्य- चिंता की कोई बात नहीं। सुख-दुःख तो लगे ही रहते हैं। कुछ दिन और आराम कीजिए। सब ठीक हो जायेगा।

रोगी- कृपया खाने को बतायें। अब तो थोड़ी-थोड़ी भूख भी लगती है।

वैद्य- फल खूब खाइए। जरा खट्टे फलों से परहेज रखिए, इनसे खाँसी बढ़ जाती है। दूध, खिचड़ी और मूँग की दाल आप खा सकते हैं।

रोगी- बहुत अच्छा! आजकल गर्मी का मौसम है; प्यास बहुत लगती है। क्या शरबत पी सकता हूँ ?

वैद्य- शरबत के स्थान पर दूध अच्छा रहेगा। पानी भी आपको अधिक पीना चाहिए।

रोगी- अच्छा, धन्यवाद! कल फिर आऊँगा।

वैद्य- अच्छा, नमस्कार।

माँ-बेटे के बीच संवाद

बेटा- माँ, ओ माँ !

माँ- अरे, आ गए बेटा !

बेटा- हाँ माँ ....... ।

माँ- आज स्कूल से आने में काफी देर लगा दी....... ।

बेटा- हाँ माँ, आज विश्व पर्यावरण-दिवस जो था।

माँ- तो क्या कोई विशेष कार्यक्रम था तेरे स्कूल में ?

बेटा- हाँ माँ, आज हमारे स्कूल में 'तरुमित्रा' के फादर आए हुए थे।

माँ- तब तो जरूर उन्होंने पेड़-पौधों के बारे में विशेष जानकारी दी होगी।

बेटा- हाँ, उन्होंने जानकारी भी दी और हम छात्रों के हाथों पौधे भी लगवाए।

माँ- तुमने कौन-सा पौधा लगाया ?

बेटा- मैंने अर्जुन का पौधा लगाया, माँ।

माँ- बहुत खूब।

बेटा- जानती हो माँ, शिक्षक बता रहे थे कि यह पौधा ह्रदय-रोग में काम आता है।

माँ- वह कैसे ?

बेटा- इसकी छाल और पत्ते से ह्रदय-रोग की दवा बनती है।

माँ- पेड़-पौधों के बारे में शिक्षक ने और क्याक्या बताया ?

बेटा- उन्होंने कहा कि पेड़-पौधे पर्यावरण को संतुलित रखते हैं। वे हमें ऑक्सीजन देते हैं। इन्हें अपने आस-पास लगाने चाहिए।

माँ- अच्छा, अब मेरा राजा बेटा, हाथ-पाँव धोकर भोजन करेगा।

बेटा- ठीक है, माँ।

डॉक्टर और मरीज के पिता के बीच संवाद

डॉ०- देखिए सर, आपका बेटा बिल्कुल निर्दोष है। इसके चरित्र के कारण इसे यह रोग नहीं हुआ है।

पिता- तो फिर कैसे हो गया ?

डॉ०- इस रोग के फैलने के कई कारण होते हैं।

पिता- डॉ० साहब, कहीं यह रोग मच्छरों के काटने से तो नहीं होता ?

डॉ०- बिल्कुल नहीं। इसके मात्र दो कारण हैं।

पिता- क्या ........ ?

डॉ०- पहला कारण तो मैंने बताया ही 'असुरक्षित यौन-संबंध और दूसरा कारण है- किसी-न-किसी रूप में संक्रमित ब्लड से सम्पर्क होना।

पिता- डॉक्टर साहब, मेरा भी चेकप कर ही दीजिए। कहीं यह ........ ।

डॉ०- चेकप करवाने में कोई हर्ज नहीं है; परन्तु आप यह जान लें कि यह रोग छुआछूत वाला नहीं है। यह रोगी से हाथ मिलाने, उसे चूमने, एक-साथ खाने-पीने से नहीं होता।

पिता- इससे बचने का कोई तो उपाय होगा न सर ?

डॉ०- एक ही उपाय है- सावधानी।

पिता- कैसी सावधानी ?

डॉ०- अपने चरित्र पर ध्यान दें; वेश्यागमन से बचें; एक ही सीरिंज का उपयोग बार-बार अनेक लोगों के लिए नहीं हो और एक ही ब्लेड का प्रयोग भी अनेक लोगों के लिए न हों, क्योंकि एड्स एक वायरल रोग है। जब तक इसके रोगी के ब्लड से किसी दूसरे का ब्लड संक्रमित नहीं होगा, तब तक इसका वायरस फैल ही नहीं सकता।

पिता- मेरे विक्की के लिए क्या उपाय है, डॉक्टर साहब ?

डॉ०- अब एक ही उपाय है- इसे खूब लार-दुलार कीजिए; क्योंकि यह चंद दिनों का मेहमान है।

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