10 अलंकार – अनुप्रास, पुनरुक्ति, यमक, उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अतिशयोक्ति, मानवीकरण ALANKAAR- Hindi
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अनुप्रयुक्त व्याकरण
खंड - क
10 अलंकार – अनुप्रास, पुनरुक्ति, यमक, उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अतिशयोक्ति, मानवीकरण
अलंकार
की परिभाषा
- अलंकार का शाब्दिक अर्थ होता है- आभूषण, यह दो शब्दों से मिलकर
बनता है-अलम + कार। अलम अर्थात आभूषण और कार अर्थात सुसज्जित करने वाला। जिस
प्रकार स्त्री की शोभा आभूषणों से होती है उसी प्रकार काव्य की शोभा अलंकार से
होती है। जिस प्रकार नारी के सौंदर्य (सुन्दरता) को बढ़ाने के लिए आभूषण होते है, उसी प्रकार भाषा
के सौन्दर्य (सुन्दरता) को बढ़ाने वाले शब्दों या तत्वों को अलंकार कहते है।
दूसरे
शब्दों में काव्य की शोभा बढ़ाने वाले शब्दों को अलंकार कहते है।
अलंकार
के भेद - इसके दो भेद होते है –
1.
शब्दालंकार- जो अलंकार शब्दों के माध्यम से काव्यों को अलंकृत करते हैं, वे शब्दालंकार
कहलाते हैं।
जैसे-
1. अनुप्रास 2. पुनरुक्ति 3. यमक
2.
अर्थालंकार - जो अलंकार किसी पंक्ति के अर्थ के माध्यम से काव्य को अलंकृत करते
हैं,
वे
अर्थालंकार कहलाते हैं। जैसे- 1. उपमा 2. उत्प्रेक्षा 3. रूपक 4. अतिशयोक्ति 5.
मानवीकरण
1.
अनुप्रास अलंकार :- परिभाषा - अनुप्रास शब्द 'अनु' तथा 'प्रास' शब्दों के योग से
बना है। 'अनु' का अर्थ है:-
बार-बार तथा 'प्रास' का अर्थ है-वर्ण।
जहाँ स्वर की समानता के बिना भी वर्णों की बार-बार आवृत्ति होती है ,वहाँ अनुप्रास
अलंकार होता है । इस अलंकार में एक ही वर्ण का बार-बार प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण
–
(1) रघुपति राघव राजा राम।
(2) चारु चन्द्र की चंचल किरणें, खेल रही थी जल थल
में।
(3) मधुर मधुर मुस्कान मनोहर, मनुज वेश का
उजियाला।
(4) कालिंदी कूल कदम्ब की डारन।
2.
पुनरुक्ति अलंकार :- परिभाषा : पुनरुक्ति दो शब्दों के योग से
बना है पुन:+उक्ति, अतः वह उक्ति जो बार-बार प्रकट हो। जिस वाक्य में शब्दों की
पुनरावृति होती है वहां पुनरुक्ति अलंकार माना जाता है। जिस काव्य में क्रमशः
शब्दों की आवृत्ति एक समान होती है , किंतु अर्थ की भिन्नता नहीं होती वहां
पुनरुक्ति अलंकार माना जाता है।
(ध्यान
दें यमक अलंकार में शब्दों के अर्थ भिन्न होते हैं, जबकि इस अलंकार के अंतर्गत
अर्थ एक समान रहता है, केवल शब्दों की वृद्धि होती है)
जैसे
– मधुर वचन कहि-कहि
परितोषीं।
उपर्युक्त
पंक्ति में कहि शब्द का एक से अधिक बार प्रयोग हुआ है इसके कारण काव्य में सुंदरी
की वृद्धि हुई है अतः यहां पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार माना जाएगा।
पुनरुक्ति
अलंकार के उदाहरण-
·
लिखन बैठि जाकी सबी, गहि-गहि गरब गरूर।
·
आदरु दै-दै बोलियत, बयासु बलि की बेर
·
झूम झूम मृदु गरज गरज घनघोर।
·
डाल-डाल अली-पिक के गायन का समां बंधा।
·
सूरज है जग का बुझा-बुझा
·
खड़-खड़ करताल बजा।
·
जी में उठती रह-रह हूक।
·
खा-खाकर कुछ पायेगा नहीं।
·
मीठा-मीठा रस टपकता।
·
थल-थल में बसता है शिव ही।
·
रंग-रंग के फूलों पर सुन्दर।
·
सुबह-सुबह बच्चे काम पर जा रहे है।
·
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों की गरिमा।
·
मैं दक्षिण में दूर-दूर तक गया।
·
उड़-उड़ वृंतो से वृंतो परे।
·
अब इन जोग संदेसनि सुनि-सुनि।
·
हजार-हजार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म
·
पुनि-पुनि मोहि देखाब कुठारु।
·
बहुत छोटे-छोटे बच्चे।
·
ललित-ललित काले घुंघराले।
3.
यमक अलंकार
:- परिभाषा - जहाँ एक ही शब्द अधिक बार प्रयुक्त हो ,लेकिन अर्थ हर बार भिन्न
हो,
वहाँ
यमक अलंकार होता है।
उदाहरण
–
(1) काली घटा का घमंड घटा।
(2) कहै कवि बेनी बेनी ब्याल की चुराई लीनी
(3) माला फेरत जग गया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।
(4) कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराय नर, वा पाये बौराय।। यहाँ कनक
शब्द की दो बार आवृत्ति हुई है जिसमे एक कनक का अर्थ है-धतूरा और दूसरे का स्वर्ण
है ।
4.
उपमा अलंकार
:- परिभाषा - जहाँ दो वस्तुओं में अन्तर रहते हुए भी आकृति एवं गुण की समता दिखाई
जाय,
वहाँ
उपमा अलंकार होता है।
उदाहरण
–
·
कर कमल-सा कोमल है।
·
मुख चन्द्रमा-सा सुन्दर है।
·
नील गगन-सा शांत हृदय था रो रहा।
·
सागर-सा गंभीर ह्रदय हो ,
·
गिरी-सा ऊँचा हो जिसका मन।
इसमें
सागर तथा गिरी उपमान, मन और ह्रदय उपमेय सा वाचक, गंभीर एवं ऊँचा साधारण
धर्म है।
5.
उत्प्रेक्षा अलंकार :- परिभाषा - जहाँ उपमेय को ही उपमान मान लिया जाता है
यानी अप्रस्तुत को प्रस्तुत मानकर वर्णन किया जाता है। वहा उत्प्रेक्षा अलंकार
होता है। यदि पंक्ति में - मनु, जनु, मेरे जानते, मनहु, मानो, निश्चय, ईव आदि आता है
बहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उदाहरण
–
(1) मुख मानो चन्द्रमा है।
(2) सिर फट गया उसका वहीं। मानो अरुण रंग का घड़ा
हो।
(3) नेत्र मानो कमल हैं।
(4) पाहून ज्यों आये हों गाँव में शहर के; मेघ आये बड़े बन ठन
के संवर के।
(5) सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल
बाहर
सोहत मनु पिये,
दावानल
की ज्वाल । ।
6.
रूपक अलंकार :- परिभाषा - जहाँ उपमेय पर उपमान का आरोप किया जाय, वहाँ रूपक अलंकार
होता है,
यानी
उपमेय और उपमान में कोई अन्तर न दिखाई पड़े।
उदाहरण
–
·
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
·
‘मैया मैं तो चन्द्र-खिलौना लैहों’
·
चरण-कमल बंदौं हरिराई।
·
बीती विभावरी जाग री।
·
अम्बर-पनघट में डुबों रही, तारा -घट उषा नागरी।'
यहाँ
अम्बर में पनघट ,तारा में घट तथा उषा में नागरी का अभेद कथन है।
यहाँ
गूंज की माला उपमेय में दावानल की ज्वाल उपमान के संभावना होने से उत्प्रेक्षा
अलंकार है।
7.
अतिशयोक्ति अलंकार :- परिभाषा - जहाँ पर लोक-सीमा का अतिक्रमण करके किसी विषय का
वर्णन होता है। वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण
-
(1) आगे नदियाँ पड़ी अपार, घोडा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस
पार।
(2) धनुष उठाया ज्यों ही उसने, और चढ़ाया उस पर
बाण।
धरा–सिन्धु नभ काँपे सहसा, विकल हुए जीवों के
प्राण।
(3) देख लो साकेत नगरी है यही।
स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही।
(4) देखि सुदामा की दीन दशा करुना करिके करुना
निधि रोए।
(5) हनुमान की पूंछ में, लगन न पायी आग।
सगरी लंका जल गई, गये निसाचर भाग।। यहाँ
हनुमान की पूंछ में आग लगते ही सम्पूर्ण लंका का जल जाना तथा राक्षसों का भाग जाना
आदि बातें अतिशयोक्ति रूप में कहीं गई है।
8.
मानवीकरण अलंकार :- परिभाषा - जहां जड़ वस्तुओं या प्रकृति पर मानवीय चेष्टाओं
का आरोप किया जाता है, वहां मानवीकरण अलंकार है।
उदाहरण
–
(1) मेघमय आसमान से उतर रही है संध्या सुन्दरी
परी सी धीरे धीरे धीरे।
(2) मेघ आये बड़े बन-ठन के संवर के।
(3) जगी वनस्पतियाँ अलसाई मुह धोया शीतल जल से।
(4) सागर के उर पर नाच-नाच करती हैं लहरें मधुर
गान।
(5) फूल हंसे कलियां मुसकाई । यहां फूलों का
हंसना,
कलियों
का मुस्कराना मानवीय चेष्टाएं हैं, अत: मानवीकरण अलंकार है।
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