हमने अबतक क्या है पाया? - कविता
हमने अबतक क्या है पाया? - कविता
एक दिन यूं ही बैठे-बैठे ,
हमें एक खयाल है आया
जीवन भर दौड़ कर भी,
हमने अबतक क्या है पाया
बचपन से अब तक,
हमें बस यही सिखाया है
मेहनत कर आगे बढ़ना है
यही राग सुनाया है
पर फिर भी सब कुछ पाकर,
खाली-खाली लगता है।
जीवन का हर एक सपना
अधूरा-अधूरा लगता है ।
सुबह से शाम तक
दिन यूहीं गुजरता है।
हररात कुछ करने की
प्रतिज्ञा नित करता है।
जिंदगी की वह सब खुशियां
जिन्हें मैं ढूंढता गया।
जिन्हें पाने की चाहत में
लम्हा हर गुजारता गया।
आंखों के सामने का मंजर,
सूना नजर आता है।
दिल के कोने में बैठा बच्चा,
खोया नजर आता है।
जीवन में खुशी है कहां
हमको यह बतला दो।
सुखचैन की जगह पर
हमें तुम पहुंचा दो।
आसमान के नीचे सोना
अब भी याद आता है।
बंद कमरों में सोना हमें
बिल्कुल नहीं भाता है।
जिन्दगी एक दिन होगी रोशन
दिलमें यही आशा है।
इसी सोच में हर एक दिन
हर लम्हा गुजरता जाता है।
- विपिन शर्मा
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